आत्म शुद्धि का पर्व है नवरात्रि -पंडित रवि दत्त शास्त्री

मां नव दुर्गा की आराधना से आता है जीवन में मंगल
कैथल। पंडित रविदत्त शास्त्री ने बताया कि नवरात्र अर्थात सिर्फ नौ रातें नहीं अपितु जीवन की नवीन और नई रात्रि भी हैं। जीवन में काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार का समावेश की घनघोर रात्रि है। जिससे प्राय: जीव उचित मार्ग के अभाव में भटकता रहता है। हमारे शास्त्रों में भी अज्ञान और विकारों को एक विकराल रात्रि के समान ही बताया गया है। इन दुर्गुण रूपी रात्रि के नाश के लिए व जीवन को एक नई दिशा, नई उमंग, नया उत्साह देने की साधना प्रक्रिया का नाम ही नवरात्र है। नवरात्र अर्थात जीवन की मुढ़ता रूपी रात्रि में एक नवीनता, एक नयापन लाने का प्रयास मां दुर्गा साक्षात ज्ञान का ही स्वरूप है और नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना का अर्थ ही ज्ञान रूपी दीपक का प्रज्वलन कर जीवन के अज्ञान, तिमिर का नाश करना है। नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री अर्थात पर्वतराज हिमालय की कन्या के रूप में जन्मी मां पार्वती का पूजन किया जाता है, द्वितीय दिन में मां ब्रह्मचारिणी, तृतीय दिवस में मां चंद्रघंटा, चतुर्थ दिवस मां कुष्मांडा, पंचम दिवस में मां स्कंदमाता षष्टम दिवस में मां कात्यायनी, सप्तम दिवस में मां कालरात्रि, अष्टम दिवस में मां महागौरी और नवम दिवस में देवी के मां सिद्धिदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है। वेद, पुराण ,उपनिषद आदि ग्रंथों में देवी के अनेक नाम मिलते हैं। शक्ति की पूजा- आराधना का विधान अकारण ही नहीं किया गया। विष्णु जी के साथ लक्ष्मी, शिव के साथ पार्वती, राम के साथ सीता, कृष्ण के साथ राधा की पूजा एक अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करती है। परमात्मा की शक्ति अपने अनेक रूपों में भक्तों पर कृपा करती है लेकिन मातृत्व के रूप में उसकी साकार वात्सल्यता तो मानो वात्सल्य का भाव अपनी पूर्ण छवि के साथ प्रकट हो जाता है। उसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण श्री रामकृष्ण परमहंस है। जिनकी मात्र साधना ने उन्हें पूर्ण रूप से शक्ति के मार्ग की ओर अग्रसर किया अपितु उन्हें मुक्ति भी प्रदान की।

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