जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश दीपक अग्रवाल की अध्यक्षता में एडीआर सेंटर के सभागार में एचआईवी एड्स एक्ट, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और पॉक्सो एक्ट के बारे में संबंधित विभागों के अधिकारियों को विस्तार से जानकारी दी

भिवानी। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश दीपक अग्रवाल के निर्देशानुसार और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव एवं सीजेएम कपिल राठी की अध्यक्षता में एडीआर सेंटर के सभागार में एचआईवी एड्स एक्ट, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और पोस्को एक्ट के बारे में संबंधित विभागों के अधिकारियों को विस्तार से जानकारी दी गई।
इस कार्यशाला में प्राधिकरण की पैनल अधिवक्ता बबली पंवार, प्रदीप वशिष्ठ और स्वास्थ्य विभाग से आभा शर्मा आईसीटीसी काउंसलर मुख्य वक्ता रहे।
इस दौरान दोनों मुख्य वक्ताओ ने संयुक्त रूप से बताया कि जब किसी बच्चे द्वारा कोई कानून-विरोधी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है, तो उसे किशोर अपराध या बाल अपराध कहते हैं। कानूनी दृष्टिकोण से बाल अपराध 18 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य है, जिसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के द्वारा कानूनी कार्यवाही के लिये बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है। बच्चों के साथ अगर पैरेंट्स खुद मारपीट करते हैं तो उनके खिलाफ न सिर्फ आईपीसी की धाराओं के तहत बल्कि जेजे एक्ट के तहत भी केस बनेगा। यदि किसी आरोपी की उम्र 18 साल से कम होती है, तो उसका मुकदमा अदालत की जगह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में चलता है। इसके बाद उस नाबालिग का कोई भी आपराधिक इतिहास रखने की बजाय नष्ट कर दिए जाने का प्रावधान है। इस प्रावधान के पीछे मंशा यह है कि नाबालिग की नई जिंदगी पर पिछले आपराधिक इतिहास का कोई प्रभाव नहीं पड़े। साथ ही उसकी पुरानी गलतियां उसकी नौकरी व प्रगति में कोई अड़चन न आये।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अंतर्गत नाबालिग द्वारा किए गए अपराध की सुनवाई की जाती है। राज्य के सभी जिलों में इसके लिए अदालतें बनाई गई हैं। इस दौरान सुधार और देखरेख के लिए उसे संप्रेक्षण गृह में रखा जाता है। जेजे एक्ट में नाबालिग के खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई के लिए अवधि निर्धारित की गई है।
उन्होंने पॉक्सो एक्ट के बारे में बताया कि इस अधिनियम (कानून) को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पोक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीडऩ, यौन शोषण और पोर्नग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्यवाही की जाती है। इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है, पॉक्सो कनून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में होती है। लडक़ी-लडक़ों दोनों यानी बच्चों को यौन उत्पीडऩ से बचाने के बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉक्सो) 2012 में संशोधन को मंजूरी दी है। इस संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है। इसके अलावा बाल यौन उत्पीडऩ के अन्य अपराधों की भी सजा कड़ी करने का प्रस्ताव भी रखा गया है।
पीड़ित मुआवजा योजना के बारे में बताया कि यदि पीड़ित चौदह वर्ष की आयु से कम है, तो मुआवजे में ऊपर विनिर्दिष्ट राशि के अनुसार पचास प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी। यह योजना हरियाणा यौन शोषण अथवा अन्य अपराधों से पीड़ित / उत्तरजीवी महिला के लिए मुआवजा योजना, 2020, कही जा सकती है। यह अधिसूचना के प्रकाशन की तिथि से लागू हुई समझी जाएगी।
स्वास्थ्य विभाग की ओर से आईसीटीसी काउंसलर आभा शर्मा ने एचआईवी और एड्स के बारे में विस्तार से जानकारी दी उन्होंने बताया कि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ सुरक्षित यौन संबंधों से, एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के रक्त एवं रक्त उत्पाद से, एचआईवी संक्रमित सुईयों व सिरिंजो के इस्तेमाल से, एचआईवी संक्रमित गर्भवती माता से उसके होने वाले शिशु को एड्स होने की संभावनाएं अधिक रहती है। उन्होंने बताया कि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ रहने, हाथ मिलाने व छूने से, साथ खाना खाने से, सामूहिक स्नानघर व शौचालय इस्तेमाल करने से एचआईवी नहीं फैलता है। बल्कि हमें एचआईवी के बचाव के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए जैसे केवल लाइसेंस प्राप्त रक्त बैंक से जांच किए खून का इस्तेमाल करें, अपने साथी के साथ वफादारी बरतें, हर बार नई सुई या उबली हुई सुई व सिरिंज का इस्तेमाल करें, गर्भावस्था के दौरान एचआईवी की जांच और उपयुक्त इलाज अवश्य करवाएं। इस अवसर पर संबंधी विभागों के अधिकारी, पैनल अधिवक्तागण, पीएलवी सहित सक्षम युवा मौजूद रहे।

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