फुटबॉल के कहां गए वो दिन, अब तो खेल में चल रहा है खेल

बेगूसराय । बेगूसराय को सूबे बिहार में खेल की नर्सरी भी कहा जाता था। यहां विभिन्न खेलों में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी हुए। परंतु, अब राजनीतिक उदासीनता, खेल संघों की राजनीति से खिलाड़ी उबर नहीं पा रहे हैं। फुटबॉल में कभी बेगूसराय का नाम राष्ट्रीय स्तर पर जाना पहचाना जाता था लेकिन आज यह खेल यहां बदहाल है। खेल मैदान का न होना, खेल संसाधनों की कमी तथा सरकारी नौकरी में स्थान नहीं मिलने के कारण लोग इससे विमुख होने लगे हैं। हालांकि सरकार  खिलाड़ियों को नौकरी देने का प्रयास लगातार करती रही है। कई महत्वपूर्ण विभागों में  खिलाड़ियों को नौकरी देती है परंतु, जब संरचना ही नहीं रहेगी, खिलाड़ी पैदा ही नहीं होंगे तो विकास और नौकरी कहां, नौकरी करेगा कौन। 1960 के दशक में बेगूसराय में फुटबॉल की टीम का गठन हुआ था और इस टीम में प्रसिद्ध फुटबॉलर विधान चंद्र मिश्रा, शिवजी प्रसाद, डेंजिल पॉल, कामता सिंह आदि शामिल थे। बेगूसराय की टीम के खिलाड़ी विधान चंद्र मिश्रा ने दिल्ली में हुए एक मैच में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए रूस के खिलाफ गोल कर सनसनी फैला दी थी। यहां की दूसरी टीम में चंद्र भूषण सिंह, सहदेव अम्बष्ट आदि थे। कहा जाता है कि टॉउन क्लब एवं लेबर क्लब के बीच बेगूसराय में जब मुकाबला होता था तो भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच जैसी सनसनी फैल जाती थी। इसके बाद मणि कुमार सिंह, किशोर प्रसाद, अशोक कुमार सिन्हा, कन्हैया कुमार, चिरंजीवी ठाकुर, राजू यादव आदि ने 1985 तक फुटबॉल को जागृत रखा। परंतु इसके बाद यह पतन की ओर गिरता चला गया। कभी यहां अकौरी नाथ शिल्ड, कलेक्टर कप जैसा टूर्नामेंट होता था। रिफाइनरी द्वारा हुमायूं कबीर का आयोजन किया जाता था परंतु एक-एक कर सभी टूर्नामेंट बंद होते चले गए। 1976 में जब रामेश्वर प्रसाद बेगूसराय के डीएम थे तो उनके प्रयास से मोइनुल हक कप प्रतियोगिता का आयोजन बेगूसराय में हुआ था।  उसके बाद कभी बड़ी प्रतियोगिता नहीं हुई। पहले सभी गांवों में फुटबॉल होता था, आज भी यही स्कूली गेम में शामिल है, सभी स्कूलों में पीटीआई हैं परंतु कहीं कुछ हो नहीं रहा है, पीटीआई के शिक्षकों का ध्यान राजनीति और समय शिक्षा विभाग के कार्यालय में ही गुजरता है। खिलाड़ी जन सहयोग से दूसरे जिले खेलने जाते हैं, स्कूलों में खेल के नाम पर खानापूर्ति हो रही है। फिलहाल अभी भी जीडी कॉलेज, को-ऑपरेटिव कॉलेज, मटिहानी, बलिया, चौकी, बरौनी फ्लैग, बीहट आदि में किसी तरह इस खेल को जिंदा रखा जा रहा है। परंतु सरकारी प्रयास न होने से यह आईसीयू में बंद होकर अंतिम सांसे ले रहा है। भारत सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग का नेहरू युवा केंद्र के माध्यम से फुटबॉल को जिंदा रखने का प्रयास भी  कारगर नहीं सिद्ध हो पा रहा है। कभी बरौनी फ्लैग की महिला फुटबॉलर मौसम, अन्नू, सेवांजलि आदि देश ही नहीं विदेशों में भी बेगूसराय का नाम रौशन करती थी परंतु आज यह टीम भी शायद राजनीति की भेंट चढ़ गई है। फुटबॉल खिलाड़ी रूपेश कुमार कहते हैं कि सरकारी सुविधा के अभाव में खिलाड़ी जन सहयोग से फुटबॉल को आगे बढ़ा रहे हैं। लोगों का कहना है कि बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थान, सरकार अगर खिलाड़ी को नौकरी की गारंटी दे, खेलों के प्रबंधन व विकास के लिए सार्थक कदम उठायें एवं योजना बनाई जाय और खेल के शिक्षक ध्यान दें तो बेगूसराय फिर से फुटबॉल में अग्रणी बन सकता है। 

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