भाजपा राष्ट्रीय सचिव औम प्रकाश धनखड़ ने हांसी में किया लोकतंत्र सेनानियों को सम्मानित

चंडीगढ़/ हांसी। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव औमप्रकाश धनखड़ ने आपात काल के 50 वर्ष पूरे के उपलक्ष्य में आयोजित संविधान हत्या दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वर्ष 1975 में लगाए गए आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला अध्याय बताया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार यहूदी आज भी अपने साथ हुए अत्याचार को नहीं भूले, उसी प्रकार देशवासियों विशेषकर युवा पीढ़ी को भी 26 जून 1975 की सुबह को याद रखना चाहिए, जब देश की नींद टूटी और उसे पता चला कि देश में आपातकाल लग चुका है। मौलिक अधिकार छीन लिए गए ,प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी गई , जिसने भी अपने हकों की बात की उसी को जेल में डाल दिया। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान में 42 वें संशोधन के तहत सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म जैसे शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ना यह प्रश्नवाचक है, जब संविधान निर्माताओं ने इन शब्दों पर विचार करने के बाद भी शामिल नहीं किया गया तो कांग्रेस की सरकार को इमरजेंसी में जोड़ने की क्या जरूरत थी। क्योंकि कांग्रेस सत्ता को नहीं छोड़ना चाहती थी। धनखड़ ने कहा कि एक अंग्रेजी अखबार ने उस दिन लिखा था – “संविधान की हत्या करने वालों को भारत के नवजवानों को नहीं भूलना चाहिए।” भारतीय जनता पार्टी उसी संकल्प के साथ इस दिन को ‘आपातकाल दिवस’ के रूप में मनाती है ताकि देश की नई पीढ़ी को बताया जा सके कि किस प्रकार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान और लोकतंत्र की हत्या की थी।
धनखड़ ने कटाक्ष करते हुए कहा – “आई से इंडिया, आई से इंदिरा” बताने वाली कांग्रेस आज संविधान की दुहाई देती है। संविधान के भक्षक दल और नेता जो संविधान की किताब हाथ में लेकर संविधान के रक्षक होने की नौटंकी कर रहे हैं। धनखड़ ने आगे कहा कि आपातकाल के दौरान धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक नेताओं को बिना किसी अपराध के जेलों में ठूंस दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राजनारायण, रामबिलास शर्मा, सहित हजारों नेताओं को मीसा और डीआईआर जैसे काले कानूनों में बंद कर दिया गया। हजारों परिवारों पर अत्याचार किए गए, बोलने की आज़ादी छीन ली गई, मीडिया पर सेंसरशिप थोप दी गई। उन्होंने कहा कि 1976 में होने वाले आम चुनावों को भी टाल दिया गया और 1977 में जब जनता को बोलने का मौका मिला तो कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। यह लोकतंत्र की ताकत थी जिसने एक सत्तावादी शासन को उखाड़ फेंका।

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