मंडी जिला के ऊपरी क्षेत्रों में आई गुच्छियों की बहार

मंडी । हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली गुच्छी संपूर्ण विश्व में अत्यधिक लोकप्रिय है। गत दिनों से हो रही बारिश से वन क्षेत्र के समीप रहने वाले लोगों को गुच्छी के अच्छे सीजन की उम्मीद बंध गई है। ग्रामीण क्षेत्रों करसोग, नाचन व सराज अधिकतर परिवारों के सदस्य सुबह तड़के ही गुच्छी की तलाश में निकलकर पड़ते हैं और शाम तक काफी मात्रा में गुच्छियां एकत्रित कर घर लौटते हैं।
बागबानी निदेशालय शिमला में कार्यरत वैज्ञानिक डॉक्टर शरद गुप्ता का कहना है कि समुद्रतल से 1800 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली गुच्छी में प्रोटीन की मात्रा 42 प्रतिशत तक पाई जाती है। इसके अतिरिक्त अपने अलग स्वाद के लिए जाने जानी वाली इस फफूंद प्रजाति में खनिज पदार्थ भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। गुच्छी को भोजन के रूप में इस्तेमाल करने के अलावा इसे दवाइयां बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। 
एक आंकलन के अनुसार विश्व भर में प्रति वर्ष 150 टन सूखी गुछियों का उत्पादन होता है । जिसमें 50 टन केवल भारत और पाकिस्तान में ही होता है । इस उत्पादन का लगभग 95प्रतिशत दूसरे देशों को निर्यात किया जाता है । मूलत: फफूंद प्रजाति से संबंध रखने वाली यह गुच्छी जंगलों में पाई जाती है । 
वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार जगंलों में पतियों के सडऩे से बने ह्यूमस, छांव और पर्याप्त नमी वाली जगहों में यह अप्रैल से जून माह के मध्य स्थानीय ग्रामवासियों द्वारा एकत्रित की जाती है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाए जाने वाली गुच्छी की प्रजातियों को वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम रूप से उगाने के काफी प्रयास किए हैं लेकिन अभी तक आंशिक रूप से ही सफलता मिल पाई है ।
पांगणा के समाजसेवी डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि गुच्छियां ढूंढना कोई आसान कार्य नहीं है। कई बार तो दिन भर जंगलों-बागीचों-खेतों की खाक छानने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता है। गुच्छियां भूमि में घास-फूस व छायादार नमी वाले स्थानों पर अधिक फूटती है। एक स्थान पर एक से अधिक गुच्छियां भी फूटती हैं,पर अकेली गुच्छी कम देखी जाती है।
डॉ.जगदीश शर्मा का कहना है कि गुच्छी औषधीय गुणों से भरपूर है। इसमें ऊर्जा, प्रोटीन, पोटैशियम, आयरन आदि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते है। यह सूजनरोधी, दिल के दौरों से मानव को सुरक्षा प्रदान करने वाली, थकान हरने वाली, प्रोस्टेट और स्तन कैंसर की संभावना को तथा मानव शरीर में पाए जाने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने वाली व बाजीकरण औषधीय गुणों से भरपूर है। 
गुच्छी के व्यापारी रहे पांगणा के धर्म पाल गुप्ता का कहना है कि स्वादिष्ट सब्जी के रूप में प्रयुक्त होने वाली गुच्छी का व्यापार वन विभाग की अनुमति से ही किया जाता है। परचून में बिना ग्रेड की सूखी गुच्छी का भाव लगभग 10000 रूपए प्रति किलोग्राम तक है। जबकि ग्रेड करने के बाद थोकभाव 15000 रूपए से 18000 रूपए प्रति किलोग्राम तक सिमट गया है। कुछ वर्ष पहले गुच्छी 25000 रूपए प्रति किलोग्राम तक बिकती थी। 
धर्मपाल गुप्ता का कहना है कि पांच सितारा होटलों में गुच्छी की अधिक मांग है। व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता का लोगों की धारणा के आधार पर कहना है कि मार्च से जून महीने तक जब गडग़ड़ाहट के साथ आसमानी बिजली चमकती है, तो जमीन से गुच्छियां फूटती हैं। 
सुमीत गुप्ता का मानना है कि वनों के कटान व पर्यावरण प्रदूषण का भी गुच्छी फूटने की दर में आई कमी पर प्रभाव पड़ा है।

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