मनोकामना पूर्ण करता है महाशिवरात्रि व्रत- आचार्य पंडित रवि दत्त शास्त्री
महाशिवरात्रि व्रत है-शिवत्व की प्राप्ति का कारक
कैथल। पंडित रविदत्त शास्त्री ने बताया कि महाशिवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म के मुख्य त्योहारों में से एक है। हर साल महाशिवरात्रि का पावन पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल ये पर्व 18 फरवरी 2023 को मनाया जा रहा है। मान्यता है कि इसी दिन शिव जी और माता पार्वती का गठबंधन हुआ था। शिव पार्वती की कृपा पाने के लिए महाशिवरात्रि का व्रत बहुत महत्व रखता है। इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा करने से वैवाहिक जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं।
प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि एक ही दिन
इस साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 फरवरी 2023 को रात 11 बजकर 36 मिनट से शुरू हो रही है। अगले दिन 18 फरवरी 2023 को रात 08 बजकर 02 मिनट पर इसका समापन होगा। इसके बाद 18 फरवरी को रात 08 बजकर 02 मिनट से चतुर्दशी तिथि की शुरुआत हो जाएगी और महाशिवरात्रि की पूजा रात्रि के चार प्रहर में करने का विधान है। ऐसे में इस साल महाशिवरात्रि के दिन यानी 18 फरवरी को सूर्योदय से लेकर अगले दिन 19 फरवरी सूर्योदय तक भोलेनाथ को प्रसन्न करने का खास अवसर प्राप्त होगा। पूरे 24 घंटे शिव जी की पूजा बेहद फलदायी होगी।
महाशिवरात्रि का पर्व हमारे देश में सामाजिक उत्सव है भले ही इसका धार्मिक महत्व है लेकिन समूचे देश में जिस आस्था, हर्ष और उल्लास से यह पर्व मनाया जाता है वह एक विशाल महोत्सव का रूप ले लेता हैl कहते हैं कि एक बार कैलाश शिखर पर स्थित मां पार्वती ने भगवान शिव से पूछा -हे भगवान !धर्म ,अर्थ, काम ,मोक्ष इन सब की प्राप्ति आपके द्वारा होती है अतः यह जानने की इच्छा है कि किस व्रत और तपस्या से आप प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा वर देते हैंl उत्तर में भगवान शिव कहते हैं- कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जिस अंधकार में रजनी का उदय होता है उसी को शिवरात्रि कहते हैं ,इस दिन जो उपवास रखता है वह निश्चित ही मुझे संतुष्ट करता है। इस दिन उपवास रखने से मैं जितना प्रसन्न होता हूं उतना किसी से किसी भी भक्तों के तीर्थ स्थान, वस्त्र दान ,धूप और पुष्प अर्पण से भी नहीं होता। पूजन की सारी सामग्री लेकर मंदिर में शिवालय में जाएं बड़ी श्रद्धा से मन ही मन ओम नमः शिवाय का जाप करते रहें। सर्वप्रथम गणपति जी पर जल अर्पित करें और फिर शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। आप पंचामृत बनाकर भी जल चढ़ा सकते हैं ,इसके बाद मां पार्वती पर जल चढ़ाएं ,उन्हें सिंदूर अर्पित करें उनकी श्रृंगार की सामग्री रखें। इसी प्रकार नंदी और कार्तिकेय का पूजन भी करें। भगवान शिव की महिमा अनंत है कहां तक उनका बखान किया जाए फिर भी इतना तो निश्चित है कि उनकी आराधना भौतिक और परलोकिक दोनों ही प्रकार के सुखों की प्राप्ति कराते हैं। महाशिवरात्रि पर्व पर उन आशुतोष भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा करें आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी ऐसा मेरा विश्वास है। महाशिवरात्रि अनंत पुण्य को प्रदान करने वाली है। शिव कल्याण के देवता हैं। वे देवाधिदेव महादेव औढरदानी है। जिसने भी श्रद्धा से उनको भजा उसके जीवन में निराशा कभी नहीं आई। रावण से युद्ध करते समय युद्धारंभ से पूर्व भगवान श्रीराम ने भी रामेश्वरम में शिवपूजन किया था। श्रीकृष्ण के कहने पर ही अर्जुन ने शिव की तपस्या कर पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था। महाशिवरात्रि सिर्फ व्रत रखने या उपवास करने का ही दिन नहीं है। इस दिन अपने मन में निर्मल भाव लेकर भगवान का अभिषेक करना चाहिए। सांसारिक मन में वासनाओं और कुवासनाओं का ढेर लगा रहता है। कभी न समाप्त होने वाली चिन्ता मन को सुखा डालती है। ऐसे में इस अत्यन्त पुण्य को देने वाले व्रत को करने से चित्त की तामसिक वृत्तियां शांत होती है। भीतर के द्वन्द्वदूर हो जाते हैं और अज्ञान के बादल छंट जाते हैं।
इस दिन जितना हो सके ऊँ नमः शिवाय का जप करें। हो सके तो महामृत्युंज्य मन्त्र की 5 या सात माला करें। शिवत्व का चिंतन और मनन करें । शिवलीला पढ़ें, कथा करें और उनकी महिमा का गान करें। देखो, बाहरी तौर पर उपवास ठीक है लेकिन मन को भी शिवमय बनाओ। शिव में ही तन्मय रहो, शिव में ही डूब जाओ। शिव कल्याणकारी है, कल्याण की भावना में भी उन्हीं के दर्शन होते हैं इसलिए इस दिन सबके कल्याण की भावना को मन में रखो। संकल्प करो कि तुमसे कभी किसी का बुरा न हो। मनसा, वाचा,कर्मणा तुम सदैव अच्छा ही करो।
धर्मग्रंथों के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शंकर और भगवती पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन लोग व्रत रखकर शिव पर्वती का विवाह उत्सव धूमधाम से मनाते हैं। काशी में महाशिवरात्रि के दिन निकलने वाली शिव बारात विश्व विख्यात है। जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में हर घर शिवरात्रि की उमंग में रंग जाता है। महाशिवरात्रि का व्रत मन की प्रवृत्तियों को शांत रखते हुए परमपिता सवाशिव का ध्यान करते हुए रखना चाहिये। ये कभी न भूलों कि शिव की उपासना अनमोल रत्नों से भी की जाती है और साधारण जल, फल तथा पुष्पों से भी होती हैं। लेकिन भोलेनाथ तो मन के भाव परखते है। वहां संस्कृत श्लोक भी हैं, वैदिक रीति भी है और भक्ति युक्त समर्पण भी है। जहां पवित्र भाव होगा वहीं भगवान को स्वीकार्य होगा और उसी से अखिल विश्व का कल्याण होगा।