हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष श्री ज्ञानचंद गुप्ता ने ‘‘1857 का संग्राम-हरियाणा के वीरों के नाम’’ नाटक के मंचन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में की शिरकत

– युवा, वीर क्रांतिकारियों के बलिदानों से प्रेरणा लेकर देश के नव निर्माण में दें अपना योगदान-गुप्ता

-‘‘1857 का संग्राम-हरियाणा के वीरों के नाम’’ नाटक के मंचन के लिए सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग की करी प्रशंसा

-इस तरह के नाटकों के मंचन से हमारी युवा पीढ़ी, देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जान सकेगी-विधानसभा अध्यक्ष

पंचकूला। हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष श्री ज्ञानचंद गुप्ता ने युवाओं का आहवान करते हुए कहा कि वे देश को आज़ाद करवाने वाले वीर क्रांतिकारियों के बलिदानों से प्रेरणा लेकर राष्ट्र के नव निर्माण में अपना योगदान दें। उन्होंने कहा कि हमें देश के लिए मरना नहीं है, अपितु देश के लिए जीकर भारत के स्वर्णिम इतिहास को जीवित रखना है।
श्री गुप्ता आज सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग, हरियाणा तथा जिला प्रशासन पंचकूला के संयुक्त तत्वावधान में पंचकूला के सेक्टर 1 स्थित जैनेन्द्र गुरूकुल के आत्म आॅडिटोरियम में ‘‘1857 का संग्राम-हरियाणा के वीरों के नाम’’ नाटक के मंचन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।
इससे पूर्व श्री गुप्ता ने परंपरागत दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर एसडीएम पंचकूला डाॅ. ऋचा राठी भी उपस्थित थी।
श्री गुप्ता ने कहा कि 15 अगस्त 2022 को भारत को आज़ाद हुए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं और इसी कड़ी में पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है जिसके तहत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले वीर क्रांतिकारियों तथा स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए कहा कि उनके बलिदानों के कारण ही हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं।
‘‘1857 का संग्राम-हरियाणा के वीरों के नाम’’ नाटक की प्रशंसा करते हुए श्री गुप्ता ने कहा कि 1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम विश्व के महान संघर्षों में से एक है। आजादी के अमृत महोत्सव के निमित आायोजित इस नाटक मंचन में हरियाणा के वीरों का जीवंत प्रस्तुतिकरण किया गया है।
उन्होंने कहा कि इस नाटक की विषय वस्तु को हरियाणा के सामाजिक, आर्थिक परिपेक्ष में गढा गया है। उन्होंने कहा कि इसकी कथावस्तु में ऐतिहासिक परिपेक्ष को भी उचित स्थान दिया गया है। नाटक को हरियाणा के लोकनाट्य सांग की शैली में रचा गया है तथा कथा गायन पद्धति को मुख्य आधार बना कर नाटक की घटनाओं को पेश किया गया है, जिसमें गीत-संगीत की प्रधानता है। राधेश्याम, आल्हा, शिवरंजनी आदी सांग के पारंपरिक धुनों पर सभी गीतों को लयबद्ध किया गया है। अभिनय शैली में भी लोकनाट्य की सहजता और स्वच्छंदता को बखूबी बनाए रखने की कोशिश की गई है। उन्होंने कहा कि अभिनेताओं में पारंपरिक और आधुनिक दोनों शामिल हैं जो संपूर्ण प्रस्तुति को एक नया स्वरूप प्रदान करता है। सांग की पारंपरिक प्रस्तुति की तरह सभी कलाकार और वाद्य वादक मंडली स्टेज पर ही बैठे रहते हैं और वहीं से उठकर अपना अभिनय करते हैं। वस्त्र विन्यास के लिए वास्तविकता और नाटकीय रचनात्मकता का समायोजन किया गया है। ऐतिहासिक तथ्यों, मानवीय संवेदनाओं और भरपूर गीत-संगीत से इस नाटक को सजाया गया है।
उन्होंने कहा कि हरियाणा हमेशा ही कृषि प्रधान देश रहा है। इसलिए 17वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी के मुनाफाखोर नीति का सबसे ज्यादा कुप्रभाव हरियाणा को भुगतना पड़ा। देशी रियासत प्रभावहीन हो गए थे। स्थानीय प्रशासन पर ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभुत्व था। कंपनी के भूमि संबंधी कानून ने कृषि को बर्बाद कर दिया। किसान तबाह हो गए। गांव के युवक रोजी-रोटी के लिए कंपनी फौज में भर्ती हो गए। लेकिन वहां भी उन्हें शोषण और प्रताड़ना ही मिली। किसानों की पीड़ा, स्थानीय स्तर पर शोषण और अत्याचार, फौज में हिन्दुस्तानी सिपाहियों की दुर्गति आदि को इस नाटक की कथावस्तु के केन्द्र में रखा गया है। साथ ही महिलाओं, युवाओं, आम लोगों, फकीरों, और इमामों के योगदान को भी रेखांकित किया गया है।
श्री गुप्ता ने नाटक का मंचन करवाने के लिए सूचना जन संपर्क एवं भाषा विभाग की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इस प्रकार के नाटकों का मंचन समय-समय पर करवाया जाना चाहिए ताकि हमारी युवा पीढ़ी, देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जान सके।
उन्होंने कहा कि इस महान संग्राम में हरियाणा के वीरों का योगदान अतुलनीय रहा है। इस संग्रमा में लगभग 3500 लोग हरियाणा से थे। प्रदेश के 115 गांवों को अंग्रेजों द्वारा पूरी तरह से जला दिया गया था ताकि कोई भी परिवार किसी क्रांतिकारी को शरण न दें।
उन्होंने बताया कि 1857 से कुछ वर्ष पहले ही अंग्रेजी दासता के खिलाफ आंदोलन शुरू हो चुका था। 1814 में प्रताप सिंह के नेतृत्व में जींद में, 1818 में जोधा सिंह के नेतृत्व में छछरौली, जाबीत खां के नेतृत्व में रानियां में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह हुआ था। 1835 में गुलाब सिंह के नेतृत्व में बनावली में तथा 1847 में कैथल में हुए विद्रोह का नेतृत्व गुलाब सिंह व साहिब कौर ने किया था। उन्होंने बताया कि 1845 में लाडवा की चिंगारी सुलगी जिसका नेतृत्व अजीत सिंह ने किया। इससे पूर्व 1824 में सूरजमल के नेतृत्व में रोहतक, हिसार व गुरुग्राम जिले में किसानों का विद्रोह हुआ। उन्होंने बताया कि 1814 में जींद जिले के लजवाना की लड़ाई की गाथा लोकगीतों में भी प्रसिद्ध है। इस यु़द्ध में जींद रियासत की सेना के विरूद्ध एक युवा लड़की ‘भोली’ ने अदभुत वीरता दिखाई तथा एक दिन में 16 अंग्रेज सैनिकों को मार कर कीर्तिमान स्थापित किया।
श्री गुप्ता ने कहा कि वे उन वीर सैनिकों को भी आज सलाम करते हैं जोे दुर्गम परिस्थितियों-तपती, गर्मी और कड़ाके की ठंड में देश की सीमाओं पर पहरा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, मदन लाल ढींगरा, उश्फाक-उल्ला खां और ऐसे हजारों वीरों को वे नमन करते हैं जिन्होंने भरी जवानी में देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। उन्होंने कहा कि आज हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों के बारे में भी जानें और उन्हें याद रखें।
इस अवसर पर पार्षद सोनू बिरला व ऋतु गोयल, विधानसभा अध्यक्ष के निजी सचिव अमित गुप्ता, विधानसभा के मीडिया एवं जन संचार अधिकारी दिनेश कुमार, सूचना एवं जन संपर्क विभाग के अधिकारी तथा कर्मचारी तथा स्कूली बच्चे व अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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