गुरु पूर्णिमा पर विशेष सतगुरु के शब्द जगाते है- शास्त्री
शिक्षा दे वह शिक्षक, दीक्षा दे वह गुरु,
प्रेम की भिक्षा दे वह सद्गुरु
कैथल। पूंडरी में पंडित रविदत्त शास्त्री ने कहा कि आपत्ति काल में जब सभी सहारे छूट जाए तो आपका साहस आपका धैर्य तथा सतगुरु की प्रेरणा ही आपको शक्ति प्रदान कर सकती है। एक छोर सतगुरु के हाथों में तथा दूसरा छोर, स्वयं प्रमात्मा के हाथों में है। इसी की डोर के सहारे मनुष्य सफलता तक पहुंच सकता है। गुरु उसे कहते है जो एक हाथ से भगवान को पकडक़र रखे और दूसरे हाथ से शिष्य को पकडक़र रखे और उचित अवसर आने पर दोनों को मिलाकर स्वयं बीच में से निकल जाए। सतगुरु वह जिसका स्पर्श हमें सन्तोष से भर दे। जिसके स्पर्श से हमारे भीतर चेतना आ जाए। जिसे देखकर ऐसा लगे कि इतना आलौकिक और विलक्षण व्यक्ति इस संसार में दूसरा कोई नहीं हो सकता तो समझिए यह सत्गुरु है। उन्होंने कहा की गुरु क्या मांगता है। गुरु हमारा मलिन मन मांगता है क्योकि गुरु के पास ऐसी शक्ति होती है कि वह हमारे मलिन मन को स्वच्छ करके पवित्र बनाकर हमें वापिस देता है। हमारे सत्गुरु ऐसे आशीर्वचन कहते है कि आपके होठों से मुस्कुराहट कभी जाए ना, आपकी आंखों से कभी आंसु ना आए , हर ख्वाब पूरा हो जाए आपका, जो पूरा ना हो सके वो ख्वाब कभी आए ना। गुरु वही है जो अपने शिष्य को अज्ञानमयी अंधकार से निकालकर ज्ञानमयी प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु शिष्य की चर्चा अनेकों विद्वान अपने- अपने दृष्टिकोण से करते हैं। लेकिन आज की बदली हुई परिस्थिति में गुरु-शिष्य का चयन टेडी खीर है। अधिकांश शिष्य ,पुत्र, पुत्री की शादी, कारोबार आदि की परेशानी के समय आशा करते हैं कि गुरु जी मेरी इस समस्या का समाधान कर दो। जो सद्गुरु होगा वह यही कहेगा कि सदैव बुरे दिन नहीं रहते। प्रभु का स्मरण करो। अच्छे दिन भी आएंगे और सब दुख दूर हो जाएंगे। लेकिन शिष्यों को चाहिए चमत्कारी गुरु जिनका हश्र क्या हो रहा है आप देख रहे होंगे? गुरु कभी चमत्कार नहीं दिखाया करता है। गुरु कृपा ही चमत्कार होती है। सुख-दुख हम प्रारब्ध वश भोग रहे हैं, अपने किए का फल भोग रहे हैं। सद्गुरु प्रभु के विधान को नहीं बदल सकता, सतगुरु कष्ट को सहन करने की कला सिखाता है धैर्य से जीने की, संयम बरतने की सलाह देता है। एक चित्र बनाना हो तो मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। ठीक उसी प्रकार एक चरित्र का निर्माण करना हो तो गुरु के बिना यह संभव ही नहीं है।
शिक्षा दे वह शिक्षक, दीक्षा दे वह गुरु,
प्रेम की भिक्षा दे वह सद्गुरु।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के रूप में संपूर्ण भारत में विख्यात है। मानव जीवन का चरम लक्ष्य है, मोक्ष। ज्ञान की प्राप्ति के बिना मोक्ष असंभव है एवं ज्ञान गुरु भक्ति से ही प्राप्त होता है। गू शब्द का अर्थ होता है अंधकार, रू शब्द का अर्थ होता है। विनाश करने वाला। इस प्रकार गुरु शब्द का अर्थ हुआ अज्ञान रूपी अंधकार का नाश कर भगवान के ज्योतिर्मय स्वरूप से साक्षात्कार कराने वाला। गुरु अपने ज्ञानोपदेश द्वारा शिष्य की ज्ञान दृष्टि खोल देता है, जब शिष्य गुरु को मन से समर्पित होता है।
सद्गुरु मुक्ति नहीं देता जब भी तुम प्रभु से दूर होने लगोगेे तब सद्गुरु तुम्हें यह स्मरण कराएगा कि तुम भटक रहे हो। अत: गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन करना वस्तुत: भगवान का पूजन ही है। यही कारण है कि इस दिन गुरु भक्त अत्यंत श्रद्धा एवं भक्ति से भाव विभोर हो अपने गुरु का पूजन ,अर्चन एवं वंदन करते हैं।