घर-घर विराजे गणपति महाराज: पंडित रवि दत्त शास्त्री

पूंडरी। पूंडरी की ओर से वार्ड नंबर -9 में नगर खेड़े पर गणेश उत्सव पर पूजन-वंदन किया। चौधरी धर्मेंद्र पुत्र लख्मीचंद सहित सभी लोगों ने गणपति बप्पा के जयकारे लगाए। इस प्रतिमा का 9 दिनों तक पूजन किया गया। पंडित रवि दत्त शास्त्री ने विधिवत पूजा अर्चना करवाई। उन्होंने कहा कि 9 दिन बाद भजनो और बाजे के साथ गणेश प्रतिमा को किसी तलाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है। गणपति सर्वव्यापक देव है, किसी भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है।
गणेश जी की जन्म कथा

शिवपुराण के अनुसार गणेश जी का जन्म माता पार्वती के उबटन से हुआ था। देवी माता एक बार हल्दी का उबटन लगा रही थीं। कुछ देर के बाद उन्होंने उबटन को उतार कर एक पुतला बनाया। उसके बाद उस पुतले में प्राण डाले. इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ. माता पार्वती ने लंबोदर को द्वार पर बैठा दिया और बोली कि किसी को भी अंदर मत आने देना। कुछ देर के बाद महादेव आए और घर जाने लगे। इस पर गणेश भगवान ने उन्हें रोक दिया। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणपति की गर्दन काट दी।
जब मां पार्वती ने गणपति की हालत देखा तो वह विलाप करने लगी और महादेव से बोली कि आपने मेरे पुत्र का सिर क्यों काट दिया। भोलेनाथ के पूंछने पर माता पार्वती ने सारी बात बताई और बेटे का सिर वापस लाने को कहा। तब भोलेनाथ ने कहा कि इसमें मैं प्राण तो डाल दूंगा परंतु सिर की जरूरत होगी। तभी भोलेनाथ ने कहा कि हे गरुड़ तुम उत्तर दिशा की ओर जाओ और जो मां अपने बेटे की तरफ पीठ करके लेटी हो, उस बच्चे का सिर ले आओ। गरुड़ काफी समय तक भटकते रहे। आखिरी समय में एक हथिनी मिली जो अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरुड़ उस बच्चे का सिर ले आए। भगवान भोलेनाथ ने वह सिर गणेश के शरीर से जोड़ दिया और उसमें प्राण डाल दिए।

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