संतान कल्याण का व्रत अहोई अष्टमी -पंडित रवि दत्त शास्त्री

कैथल। यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को पुत्रवती महिलाओं द्वारा संतान की रक्षा एवं दीर्घायु के लिए किया जाता है‌। पंडित रविदत्त शास्त्री ने बताया कि व्रत का विधान यह है कि सायंकाल के समय दीवार पर 8 कोनों वाली एक पुतली अंकित की जाती है। उस आकृति में पुतली के पास ही स्याऊ माता व उसके बच्चे बनाए जाते हैं। थाली में हलवा, रुपया, वस्त्रादि यथाशक्ति लेकर बायना निकाले और सास अथवा घर की बड़ी स्त्री को चरण छू कर दे। तारे निकलने के बाद दीवार में चित्रित अहोई देवी का पूजन कर व तारे को अर्घ्य देकर स्त्रियां भोजन करती हैं।
अहोई अष्टमी की कथा इस प्रकार है:
कथा-एक स्त्री के 7 पुत्र थे। एक दिन वह स्त्री जंगल में मिट्टी खोद रही थी। खुदाई करते हुए कुदाली शेह के बच्चे को लग गई और तुरंत उसकी मृत्यु हो गई। स्त्री के मन में बहुत ही दुख हुआ। वह मिट्टी लेकर घर वापस चली आई। कुछ दिनों बाद उसके बड़े लड़के की भी मृत्यु हो गई 1 वर्ष के भीतर ही उसके सातों लड़के चल बसे। उसका मन बहुत दुखी रहने लगा। सारा दिन रोती रहती थी। उसने एक दिन घर की बड़ी बुढ़िया को बताया कि मिट्टी खोजते हुए उससे एक दिन पाप हुआ। एक सेह के बच्चे को कुदाली लग गई और वह मर गया तभी उसके सभी पुत्र चल बसे। बड़ी बुढ़ियों ने दु:ख के निवारण के लिए एक उपाय बताया। अष्टमी के दिन भगवती के पास सेह और सेह के बच्चे बनाकर उसकी पूजा करो। यह करने से तुम्हारा पाप धुल जाएगा और पुनः तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। यह सुनकर उसने श्रद्धा व विश्वास के साथ अष्टमी का व्रत रखा और पूजन किया। इसके प्रभाव से फिर से उसे 7 पुत्रों की प्राप्ति हुई। तभी से पुत्र कल्याण आरती, व्रत व पूजन की परंपरा चली।

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