संघ की तरह कांग्रेस को भी ‘संगठन’ खड़ा करने की जरूरत
नई दिल्ली । कांग्रेस में भाजपा से अधिक चिंता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को लेकर है। पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि महात्मा गांधी के सत्याग्रह, सादगी, सेवा, हिन्दू संस्कृति की सर्जना, राम-कृष्ण की आराधना से देश में जो वैचारिक, सामाजिक मंच बना था, उसका लाभ आजादी के बाद कांग्रेस को मिला। अब उसी तरह से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तमाम आनुषांगिक संगठनों, उनके कार्यों, उनके पूर्णकालिक या अंशकालिक तन-मन से समर्पित कार्यकर्ताओं की मेहनत का लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है।
पूर्व सांसद व गांधीवादी रामजी भाई का कहना है कि संघ के आधार व काम की बदौलत ही भाजपा लोकसभा चुनाव में राजस्थान, म.प्र., गुजरात, उ.प्र., बिहार, झारखंड तथा पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में केन्द्रीय सत्ता, संसाधन व तंत्र का भरपूर उपयोग करके इतनी अधिक सीटें ला पाई है। सो अब कांग्रेस को भी पार्टी के अलावा संघ जैसा एक सामाजिक संगठन खड़ा करने व अपने में सांगठनिक ढांचे में सुधार लाने की जरूरत है। उसके बिना वह पार नहीं पा सकेगी। इस बारे में म.प्र. के पूर्व विधायक राजेन्द्र तिवारी का कहना है कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा वापस नहीं लेते हैं, तो वह इस तरह की संस्था खड़ा करने के लिए उपयुक्त हैं क्योंकि उन्होंने विभिन्न धर्मों के अध्ययन से लगाकर महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं को जाकर देखा, सुना और गुना है। उनमें लक्ष्य के लिए जूझने का माद्दा है। उन्हें किसी शक्तिशाली हुक्मरान द्वारा नुकसान पहुंचाने का भी डर नहीं है। इसलिए कांग्रेस में उनसे उपयुक्त इस कार्य के लिए कोई और नहीं है।
इस तरह की संस्था खड़ा होते ही कांग्रेस आधी लड़ाई जीत लेगी। बाकी लड़ाई कांग्रेस की ऊपर से नीचे तक ओवरहालिंग करके और नये सिरे से नेटवर्किंग खड़ा करके जीती जा सकती है। इस बारे में कांग्रेस नेता अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि पार्टी में ऐसा ही संगठन सेवादल रहा है लेकिन उसमें भी पार्टी के पदाधिकारी, राजनीतिक लोग घुस गये। इस कारण यह संगठन जिस सोच के तहत खड़ा किया गया था, उसका मकसद पूरा नहीं हो पाया। यदि एक नई संस्था बन जाये जिसमें पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहें तो उसका लाभ पार्टी को मिल सकता है। वह संगठन उस भूमिका में आ सकता है जिस भूमिका में राष्ट्रीय स्वयं संघ भाजपा को मदद करता है। कांग्रेस का यह संगठन संघ की काट भी हो सकता है।
गांधीवादी विचारक रामलाल राही का कहना है कि गांधी कभी अप्रासंगिक नहीं हुए। सृजनात्मकता गांधी के बताये रास्ते से ही आगे बढ़ाई जा सकती है, गोडसे के रास्ते से नहीं। आज अगर चाहे हार या अन्य जिस भी वजह से कांग्रेस पार्टी के लोगों को गांधी की याद आ रही है और उनके बताये रास्ते पर चलने की जरूरत महसूस हो रही है तो अच्छी बात है।