चित्रकार हरिपाल त्यागी पंचतत्व में विलीन
नई दिल्ली । प्रख्यात चित्रकार और साहित्यकार हरिपाल त्यागी (85) गुरुवार पूर्वाह्न 11 बजे पंचतत्व में विलीन हो गए। आखिरी सांस तक वामपंथ के संवाहक त्यागी जीवन पर्यंत चमकीली दुनिया महानगरीय शोरगुल से दूर पूर्वी दिल्ली के आखिरी कोने पर बसे लेखकों के गढ़ गांव ‘सादतपुर’ में रहे। उन्होंने बुधवार शाम चार बजे अपने मझले बेटे निर्दोष त्यागी के घर (सादतपुर विस्तार) में आखिरी सांस ली।
वह इस समय वरिष्ठ साहित्यकार महेश दर्पण की आने वाली किताब की भूमिका लिख रहे थे। हालांकि वह सिर्फ एक पंक्ति ही लिख सके-‘दर्पण की यह किताब…’ और नीचे हस्ताक्षर कर निर्दोष से बोले बस। पिता के साथ आखिरी पलों का यह किस्सा बताते निर्दोष रो पड़े। निर्दोष इनदिनों अपना प्रकाशन केंद्र संचालित कर रहे हैं। निगम बोध घाट पर रचनाकार हरिपाल त्यागी की अंतिम और अनंत यात्रा पर विदाई देने के लिए निकटतम रिश्तेदार, तीनों पुत्र, दोनों दामाद, बेटियों और बच्चों के अलावा हिंदी साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर मौजूद रहे।
20 अप्रैल, 1934 को महुवा, बिजनौर (उत्तर प्रदेश) में जन्मे त्यागी ने आत्मकथा, व्यंग्य, उपन्यास और बाल साहित्य पर भी काम किया। उनकी मुख्य कृतियां हैं- अधूरी इबारत, महापुरुष, आदमी से आदमी तक, ननकू का पाजामा, सुबह का गायक, चमकीला मोती, स्पाटकिस का रूपांतरण, अमरफल। 2007 में उन्हें दो सम्मान उत्तर प्रदेश साहित्य परिषद का कलाभूषण और नई धारा रचना प्राप्त हुए। वह एक दशक से नए तैल चित्रों की शृंखला पर काम कर रहे थे।
हरिपाल त्यागी कुछ समय से बीमार थे। बुधवार अपराह्न करीब तीन बजे उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई। उन्होंने कई मित्रों से बात करने की इच्छा जताई। परिजन उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए प्रथम तल से नीचे लाए लेकिन उन्होंने अस्पताल जाने से इनकार कर दिया। वह अपने वारिश के रूप में भरा-पूरा परिवार और वैचारिक प्रतिबद्धता के अनगिनत प्रहरी छोड़ गए हैं। परिवार में पत्नी के अलावा तीन बेटे, दो बेटियां और बच्चे हैं।
वे जनता के कलाकार नाम से विख्यात रहे। वह ताउम्र बतौर फनकार अपनी शर्तों पर जिये। कला की व्यावसायिकता के खिलाफ रहे। उन्होंने सैकड़ों चित्र केवल साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के लिए बनाए। मधुशाला जैसी अमरकृति के रचनाकार हरिवंश राय बच्चन से लेकर कमलेश्वर, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, नामवर सिंह, मन्नू भंडारी, हिमांशु जोशी, मंगेश डबराल आदि उनकी कलाकृतियों के मुरीद रहे हैं। त्यागी की पेंटिंग्स 70-80 के दशक में छपने वाली लगभग सभी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के आमुख पर नुमाया हुई हैं। त्यागी की पहली पेंटिंग का लोकार्पण 13 फरवरी, 1969 को साहित्यकार मोहन राकेश ने किया था। इसका आयोजन नई दिल्ली स्थित श्रीधराणी गैलरी में किया गया था। उनका एक तैल चित्र ‘वसंतसेना’ वर्ष 1961 में एक पत्रिका में प्रकाशित और प्रशंसित हुआ था।