निर्जला एकादशी पर जगदीश के दर्शन को उमड़े श्रद्धालु

निर्जला एकादशी पर जगदीश के दर्शन को उमड़े श्रद्धालु -मौसम सुधरते ही पतंगों की दुकानों पर बच्चों की भीड़ 
उदयपुर । ‘देवदेव हृषिकेश संसारार्णवतारक, उदकुंभप्रदानेन नय मां परमां गतिम्।’ अर्थात्: संसार सागर से तारने वाले देवों के देव हृषिकेश। इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइए। निर्जला एकादशी पर इसी कामना से गुरुवार को श्रद्धालुओं ने निर्जल व्रत रखा, दानपुण्य किए और अपने आराध्य के दर्शन कर परम्परानुसार आम-केरी, जल से भरी मटकी समर्पित की।

उदयपुर शहर के प्रसिद्ध स्मार्त सम्प्रदाय के जगदीश मंदिर और वल्लभ सम्प्रदाय के श्रीनाथ मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ रही। खासतौर से महिलाओं की भीड़ जबर्दस्त थी। जगदीश मंदिर के गर्भगृह से लेकर मंदिर परिसर और उससे बाहर जगदीश चौक तक पग रखने की जगह नहीं थी। निर्जला एकादशी पर बरसों से भगवान जगदीश के दर्शनों की परम्परा रही है और सिर्फ उदयपुर शहर ही नहीं, समूचे अंचल से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। ऐसे में मंदिर की ओर जाने वाले मार्गों पर यातायात भी बंद रखा गया। इधर, श्रीनाथ मंदिर में शृंगार की झांकी के दर्शन के समय श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। इससे पहले वहां निर्जला एकादशी की व्रत कथा सुनने महिलाओं की भीड़ रही। दोनों ही मंदिरों के बाहर बड़ी संख्या में याचकों की कतार मार्ग के दोनों ओर थी। झोली फैलाकर बैठे याचकों को श्रद्धालुओं ने अन्न का दान किया। दान का आलम यह था कि दोपहर बाद याचकों की झोलियां जो बोरियां थीं, भर गईं। कई श्रद्धालुओं ने गोशालाओं में गायों को रिचका भी दान किया। 

इस बीच, बुधवार रात बारिश होने और गुरुवार सुबह से बादल छाए रहने से भी मंदिरों में सुबह-सुबह भीड़ ज्यादा रही। हालांकि, धूप से बचाव के लिए शामियाने लगाए गए थे, लेकिन मौसम अच्छा होने से श्रद्धालुओं और उनकी सेवा में लगे भक्तों को भी राहत रही। मौसम ठीक रहने से उदयपुर में पतंगबाजी का दौर भी शाम को परवान पर रहने की उम्मीद है। सुबह से पतंगों की खरीदारी भी जोरों पर रही। यह है निर्जला की व्रत कथा -एक बार महार्षि व्यास से भीम ने कहा कि भगवन, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुंती और द्रोपदी सब एकादशी का व्रत रखते हैं और साथ ही मुझसे भी व्रत करने को कहते हैं, लेकिन मैं बिना खाये नहीं रह सकता। इसलिए 24 एकादशियों में निराहार रहना तो मेरे बस की बात नहीं है। मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए, जिसे करने मे मुझे असुविधा न हो और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो।
भीम की बातें सुनने के बाद व्यास जी ने कहा, हे कुंतीनंदन धर्म की यही विशेषता है कि यह सबको धारण ही नहीं करता, वरन सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की सहज और लचीली व्यवस्था भी करता है। ज्येष्ठ महीने में वृष या मिथुन राशि पर रहने पर शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत तुम करो। इस व्रत में जल भी ग्रहण मत करना, सिर्फ कुल्ला और आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो। इसके अलावा अगर तुमने जल ग्रहण किया तो, व्रत भंग हो जाएगा। एकादशी में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक जल का त्याग करना चाहिए। 

इसके बाद भीम ने बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी का व्रत किया। द्वादशी को स्नान आदि कर भगवान केशव की पूजा कर व्रत सम्पन्न किया। इस कारण से इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है।
इस दिन दान का बहुत महत्व है इसलिए जल, गोदान, वस्त्र दान, छत्र दान, जूता, फल आदि चीजों का दान करना चाहिए। इसके साथ ही भगवान विष्णु के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करना चाहिए। 

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