राजस्थान हाईकोर्ट में जजों को माय लॉर्ड और योर ऑनर बोलने पर रोक
जोधपुर । सुप्रीम कोर्ट के बाद अब राजस्थान हाईकोर्ट ने भी न्यायाधीशों को माय लॉर्ड, योर लॉर्डशिप अथवा योर ऑनर के रूप में संबोधित नहीं करने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये संभवतः पहली बार है जब किसी हाइकोर्ट ने इन शब्दों के प्रयोग नहीं करने को लेकर आधिकारिक आदेश जारी किया है। न्यायाधीशों को माय लॉर्ड और यॉर लॉर्डशिप जैसे संबोधनों को समानता के अधिकार के अनुरूप नहीं मानते हुए हाइकोर्ट की पूर्ण पीठ ने इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया है कि इनका उपयोग बंद करने के लिए अधिवक्ताओं को अनुरोध किया जाए। इस पर कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से सोमवार को नोटिस जारी किया गया है।
उल्लेखनीय है कि रविवार को मुख्य न्यायाधीश एस. रविन्द्र भट्ट के कार्यकाल में हुई पूर्णपीठ की पहली बैठक में हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ के न्यायाधीशों ने भी भाग लिया। इस अवसर पर यह तय किया गया संविधान में निहित समानता के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीशों को माय लॉर्ड आदि से संबोधित नहीं किया जाना चाहिए। पूर्ण पीठ के निर्णय के बाद सोमवार को हाइकोर्ट प्रशासन ने आदेश जारी किया है, जिसमें इन शब्दों को प्रयोग नहीं करने के निर्देश दिए हैं।हाइकोर्ट रजिस्ट्रार सतीश कुमार शर्मा ने बताया कि काउंसिल की ओर से आए प्रतिवेदन पर फुल कोर्ट ने इन शब्दों को प्रयोग नहीं करने का निर्णय लिया है, लेकिन निश्चित ही जजों को सम्मान और गरिमापूर्ण तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों के प्रति सर का संबोधन भी स्वीकार्य है।
गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट ने छह जनवरी 2014 को कहा था कि हमने कब कहा कि यह अनिवार्य है। आप हमें सिर्फ गरिमापूर्ण तरीके से संबोधित कर सकते हैं। उस समय सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट शिव सागर तिवारी ने एक जनहित याचिका दायर कर जजो को माय लॉर्ड या योर लॉर्डशिप से संबोधित करना अंग्रजों के जमाने की देन और गुलामी का प्रतीक बताया था।