बसीरहाट : मुस्लिम बहुल सीट पर तृणमूल ने बदला उम्मीदवार

कोलकाताb । पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटे बसीरहाट संसदीय क्षेत्र कुछ खास है। वजह यह है कि यहां से तृणमूल कांग्रेस के निवर्तमान सांसद इदरीश अली को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। वह ममता बनर्जी की लगातार प्रशंसा करते थे। उनके लिए नोबेल प्राइज तक देने की मांग कर चुके थे, लेकिन उनकी सांप्रदायिक छवि की वजह से ममता बनर्जी ने उनका टिकट काट दिया। इदरीश की जगह पर इस बार अभिनेत्री नुसरत जहां को उम्मीदवार बनाया गया है। यह अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है और अल्पसंख्यक आबादी ही हार जीत का फैसला करती है।
एक अभिनेत्री को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर यहां के अल्पसंख्यकों के संगठन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस से विभिन्न स्तर पर आपत्ति दर्ज कराई है। उम्मीदवार बदले जाने को लेकर भी संगठनों में नाराजगी है और अधिकतर लोग उम्मीदवार बदलने की सूरत में भी जमीनी स्तर पर क्षेत्र में काम करने वाले किसी व्यक्ति को टिकट देने की मांग करते रहे हैं लेकिन ममता बनर्जी ने नुसरत जहां को टिकट देने के बाद में उम्मीदवार बदलने से इनकार कर दिया। 
इधर भारतीय जनता पार्टी ने राज्य के सबसे विश्वसनीय सिपहसालारों में से एक सायंतन बसु को मैदान में उतारा है। वह प्रदेश भाजपा के महासचिव हैं और प्रवक्ता भी। बशीरहाट लोकसभा सीट बांग्लादेश की सीमा से लगता हुआ इलाका है। यहां की 2,217 किलोमीटर की सीमा पड़ोसी देश से लगती हुई है। पूरा इलाका मुस्लिम बहुल है। सीमा के करीब होने की वजह से यहां अल्पसंख्यक घुसपैठ और कुछ समय तक रोहिंग्याओं को बसाने का मुद्दा भी गर्म रहा है इसीलिए भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीत के बाद यहां एनआरसी लागू करने और घुसपैठियों को खदेड़ने को लेकर पूरे क्षेत्र में प्रचार करते हैं। 
एक तरफ अल्पसंख्यक मतदाता तृणमूल से नाराज हैं। उसके बाद उनका वोट कांग्रेस और माकपा में भी बटा हुआ है तो दूसरी ओर यहां की हिंदू आबादी लामबंद हो रही है। एक साल पहले यहां भयावह सांप्रदायिक दंगे हुए थे जिसमें पुलिस ने अधिकतर हिंदुओं को ही मारापीटा था और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। इसे लेकर भी इलाके के लोगों में नाराजगी है। बसीरहाट के दंगे पूरे देश में सुर्खियां बने थे। उसका लाभ भाजपा को मिल रहा है और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ लोग खड़े हैं। 19 मई को यहां अंतिम चरण में मतदान होना है इसीलिए माना जा रहा है कि इस बार इस सीट पर भी मुकाबला बहुत दिलचस्प होगा। भाजपा के संसदीय उम्मीदवार सायंतन बसु ने कहा है कि लोग जमीनी स्तर पर काम करने वाले सांसद को चुनना चाहेंगे ना कि एक ऐसी अभिनेत्री को जो हारने या जीतने के बाद इलाके से हमेशा के लिए गायब हो जाए और किसी की खोज खबर लेने के लिए नहीं पहुंचे। 
 कौन कौन हैं उम्मीदवार 
उत्तरी चौबीस परगना जिले में आने वाले बशीरहाट लोकसभा सीट पर सीपीएम और कांग्रेस के बीच लड़ाई रही है लेकिन 2009 के बाद स्थितियां बदल गईं। 2009 में इस सीट से टीएमसी ने जीत हासिल की और तब से लेकर अब तक इस सीट को अपने कब्जे में बनाए हुए है। टीएमसी के मौजूदा सांसद इदरीस अली इस बार का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। टीएमसी ने बशीरहाट सीट से नुसरत जहां को उतारा है। नुसरत का मुकाबला सीपीआई के पल्लव सेनगुप्ता से है। भाजपा की तरफ से सायंतन बसु भी मुकाबले में हैं। कांग्रेस ने इस सीट से काजी अब्दुर रहीम को टिकट दिया है। 
क्या है पूर्व का जनादेश 
-बशीरहाट लोकसभा सीट पर सीपीएम और कांग्रेस के बीच मुकाबला रहा है। 2009 के चुनाव में टीएमसी ने इस सीट पर कब्जा कर लिया। 2009 में टीएमसी के नुरुल इस्लाम ने जीत हासिल की। उन्होंने सीपीआई के अजय चक्रवर्ती को शिकस्त दी थी। 2014 के चुनाव में जहां पूरे देश में मोदी की लहर थी बंगाल में ममता बनर्जी का जादू बोल रहा था। इस चुनाव में बंगाल में टीएमसी ने 42 में से 34 सीटों पर कब्जा जमाया था। इसमें बशीरहाट की सीट भी शामिल है। इस सीट से टीएमसी के इदरीस अली सांसद चुने गए। इदरीस अली को 4 लाख 92 हजार 326 वोट हासिल हुए जबकि उनके नजदीकी प्रतिद्वंद्वी सीपीआई के नुरुल हूद्दा को 3 लाख 82 हजार 667 वोट मिले। इस सीट से भाजपा उम्मीदवार समीक भट्टाचार्य तीसरे स्थान पर रहे थे। उन्हें कुल 2 लाख 33 हजार 887 वोट हासिल हुए थे। 
बशीरहाट सीट का राजनीतिक इतिहास
-1952 में जब देश में पहला आमचुनाव हुआ तो बशीरहाट लोकसभा सीट दो सदस्यीय सीट हुआ करती थी।‌1952 में पहली बार सीपीएम के टिकट पर रेणु चक्रवर्ती ने जीत हासिल की। उसके बाद कांग्रेस की प्रतिमा रॉय इस सीट से सांसद चुनी गईं। 1957 के चुनाव में सीपीएम की रेणु चक्रवर्ती ने दोबारा जीत हासिल की। उनके बाद कांग्रेस के परेशनाथ कायल सांसद बने। 1962 और 1967 के चुनाव में यहां से हुमायूं कबीर सांसद चुने गए। पहले वो कांग्रेस के टिकट पर जीते फिर बांग्ला कांग्रेस के टिकट पर। 1970 में हुए चुनाव में बांग्ला कांग्रेस के टिकट पर सरदार अमजद अली ने जीत हासिल की और सांसद बने। 1971 से लेकर 1977 तक इस सीट से कांग्रेस के ए के एम इश्क ने सांसद के तौर पर प्रतिनिधित्व किया। इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के अल्हाज एम ए हन्नान ने जीत हासिल की।इसके बाद 1980 से लेकर 2009 तक इस सीट पर सीपीएम का कब्जा रहा। 1980 से लेकर 1989 तक इंद्रजीत गुप्त ने सांसद रहे. इसके बाद 1989 से लेकर 1996 तक मनोरंजन सुर ने इस सीट से जीत हासिल की। 1996 से लेकर 2009 तक लगातार इस सीट से अजय चक्रवर्ती जीतकर संसद पहुंचे। 2009 में अजय चक्रवर्ती को टीएमसी के नुरुल इस्लाम ने शिकस्त दी। तब से लेकर ये सीट टीएमसी के पास है।क्या है मतदाताओं का आंकड़ा
-बशीरहाट लोकसभा सीट बांग्लादेश की सीमा से लगता हुआ इलाका है। यहां की 2,217 किलोमीटर की सीमा पड़ोसी देश से लगती हुई है। पूरा इलाका मुस्लिम बहुल है। यहां की आबादी का करीब 65 फीसदी खेती और मछली पालन पर आश्रित है। साक्षरता दर औसत तौर पर कम है। बांग्लादेश की सीमा से सटा होने के कारण अवैध तस्करी एक अहम मसला है। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें आती हैं. जिनमें- बादुडिय़ा, हारोआ, मीनाखां, संदेशखाली, बशीरहाट दक्षिण, बशीरहाट उत्तर हिंगलगंज शामिल हैं। 2004 के चुनाव में स्वरूपनगर विधानसभा सीट को भी इसमें मिला लिया गया। 2019 के चुनाव की बिसात बिछ चुकी है और मतदाता मतदान की तारीख का इंतजार कर रहे हैं।

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