बाहुबली अतीक अहमद ने सियासी जंग में छोड़ा मैदान, जेल से लिखा पत्र

वाराणसी । लोकसभा चुनाव 2019 के आखिरी चरण में वाराणसी में सियासी जंग दिलचस्प हो गई है। चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ निर्दल नामांकन करने वाले बाहुबली अतीक अहमद ने चुनावी अखाड़े में उतरने के पहले ही मैदान छोड़ दिया है।

  प्रयागराज जिले के नैनी जेल से अतीक ने मीडिया को भेजे गये पत्र में बताया है कि उन्होंने तय किया है कि वाराणसी से चुनाव नहीं लड़ेंगे। अतीक ने कारण भी बताया है। उन्होंने बताया कि वाराणसी संसदीय सीट से निर्दलीय नामांकन करने के बाद चुनाव प्रचार करने के लिए न्यायालय में पेरोल के लिए अर्जी दी थी। जिसे इलाहाबाद एमपी, एमएलए कोर्ट के बाद हाईकोर्ट ने भी अपील खारिज कर दी। 
  अतीक ने लिखा है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मजबूत है। इसके बाद भी यहां ऐसी विचारधारा के लोग भी मौजूद हैं जो लोकतंत्र को समाप्त कर हिटलरशाही लाना चाहते हैं। इस पत्र में मतदाताओं से सांप्रदायिक ताकतों को परास्त करने की अपील भी की गई है। वाराणसी में नामांकन पत्र वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के कारण बैलट यूनिट में अतीक अहमद का नाम और चुनाव चिन्ह अंकित रहेगा। अतीक अहमद का चुनाव चिन्ह टेलीविजन हैं।
 गौरतलब है कि वाराणसी में अतीक अहमद के चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोटो का ध्रुवीकरण नहीं हो पा रहा था। मुस्लिम मतों के बिखरने से इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिल रहा था। शहर में यहा तक चर्चा रही कि अतीक के वाराणसी में चुनाव लड़ने के पीछे भाजपा भी हो सकती है। लेकिन अतीक के चुनावी मैदान छोड़ते ही साफ हो गया कि मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण से नम्बर दो की लड़ाई दिलचस्प हो गई है। कांग्रेस या गठबंधन को जिसे भी इस तबके का एक मुश्त मत मिलेगा वह मुख्य मुकाबले में आने के साथ जमानत बचाने में भी कामयाब हो जायेगा। इसके पीछे का तर्क है कि 2014 के लोकसभा चुनाव का परिणाम। जिसमें आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल को एस समुदाय का एकतरफा मत मिला था और वे अपना जमानत बचा ले गये।

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