कर्नाटक : एक साल का जश्न मनाना लोकसभा चुनाव परिणामों पर निर्भर

बेंगलुरु। कर्नाटक की एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जनता दल-सेक्युलर (जेडीएस) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस गठबंधन सरकार को बुधवार को एक साल पूरा हो जाएगा, लेकिन सत्ता के साझीदारों का इस एक साल का जश्न मनाना लोकसभा चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा। हालांकि बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार मई 2018 के विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद अस्तित्व में आई और पार्टी 224 सदस्यों के सदन में बहुमत के लिए 113 के जरूरी आंकड़े से वंचित हो गई। तब भगवा पार्टी स्वयं के 104 सदस्यों के साथ दावा कर सकती थी जबकि कांग्रेस के 80, जेडीएस के 38 और दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन से उन्होंने सरकार का गठन किया। सदन में बहुमत के लिए आवश्यक आंकड़ा नहीं होने के कारण बीएस येदियुरप्पा को झुकना पड़ा और सरकार के सदन में बहुमत करने से पहले ही इस्तीफे की घोषणा करनी पड़ी। कांग्रेस ने बहुमत हासिल करने के लिए राज्यपाल वजुभाई वाला द्वारा बीएस येदियुरप्पा को दिए गए 15 दिनों की समय सीमा पर सवाल उठाते हुए शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक महत्व के इस मामले पर इतिहास में पहली बार रात भर याचिका पर सुनवाई की और राज्यपाल द्वारा 15 दिनों के समय पर रोक लगाकर तीन दिन का समय दिया। यह जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के लिए जश्न का समय था, जिसने सरकार बनाने में समय बर्बाद नहीं किया। यद्यपि गठबंधन के साथी कई आंतरिक मतभेद  के साथ सत्ता में आने में कामयाब रहे। नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती 42 लाख किसानों की 46,000 करोड़ रुपये की ऋण माफी का अहम् मुद्दा था, जो जेडीएस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया था। हालांकि कांग्रेस ने कभी भी ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया लेकिन उसके पास मूकदर्शक बने रहने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था। कृषि ऋण माफी की अधूरी घोषणा गठबंधन सरकार को परेशान किये है और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा नेताओं द्वारा इसका बहुत अधिक उपहास किया जाता रहा है। वास्तव में, प्रधानमंत्री ने न केवल राज्य बल्कि देश की और राज्य सरकारों को संभालने के लिए हरसंभव अवसर का उपयोग किया। हालांकि राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान का एक बड़ा हिस्सा सॉफ्टवेयर निर्यात से आता है, लेकिन एक ही उद्योग से राज्य के खजाने की ओर बहने वाला राजस्व वास्तविकता में नगण्य है। सूत्रों के अनुसार राज्य का सार्वजनिक ऋण अनुपात 3,00,000 करोड़ रुपये का है और एचडी कुमारस्वामी ने ब्याज भुगतान के लिए 2019-20 के बजट में 19,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं। दिलचस्प है कि यह अनुपात राज्य के बजट के 8.5 प्रतिशत से अधिक है। कृषि ऋण माफी के लोकलुभावन उपाय और वित्तीय स्थिति जैसी तंगी की बदौलत मुख्यमंत्री को विकासात्मक योजनाओं के लिए संसाधन जुटाना मुश्किल हो रहा है। स्ट्रीट वेंडर्स को ब्याज मुक्त ऋण के भुगतान के लिए बदवारा बंधु योजना और और छह महीने की अवधि के लिए गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए मासिक 2,000 रूपए भुगतान को गठबंधन सरकार की प्रमुख सफलता की कहानियों के रूप में जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हालाँकि, सिंचाई प्रयोजनों के लिए 1.5 लाख करोड़ की योजना की घोषणा अब तक नहीं देखी गई है। बजट में घोषित की जा रही कई सामाजिक कल्याण योजनाओं के बावजूद उनमें से अधिकांश केवल कागजों पर हैं। वित्तीय क्षेत्र में घबराहट के आघात के अलावा, गठबंधन के सहयोगियों के बीच भी समग्र राजनीतिक स्थिति बेहतर नहीं है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और समन्वय समिति के संयोजक सिद्धारमैया हर बार मुख्यमंत्री बनने की इच्छा को उच्चारित करने में आनन्दित रहते हैं और उनका मुकाबला करने के लिए जेडीएस पीछे नहीं है क्योंकि उसने अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एच. विश्वनाथ को उनका मुकाबला करने के लिए मैदान में उतार दिया है।  भाजपा के शीर्ष नेता अब तक वर्तमान सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त संख्या जुटाने में विफल रहे हैं लेकिन राज्य के दो विधानसभा उपचुनाव और देश के संसदीय चुनाव परिणामों के नतीजों पर उम्मीदें लगाए बैठे हैं। एचडी कुमारस्वामी ने खुद मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद कबूल किया था कि मुझे वास्तव में यह नहीं पता है कि यह गठबंधन सरकार कब तक चलती है लेकिन एक बात तय है कि यह कम से कम लोकसभा चुनाव तक जारी रहेगी। चूंकि लोकसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं और कल पता चल जाएगा कि जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार सत्ता को बरकरार रहेगी या बेदखल हो जाएगी?

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