राजद की समीक्षा बैठकों में कौन बांधेगा बिल्ली के गले में घंटी

राजद की समीक्षा बैठक 28 व 29 मई को

पटना । क्या राजद के नेता पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास 10 सर्कुलर रोड में 28 और 29 मई को होने वाली समीक्षा बैठकों में पूरी ईमानदारी और बेबाकी के साथ लोकसभा चुनाव में अपनी महाशिकस्त के कारणों की तलाश करने की कोशिश करेंगे या फिर ये बैठकें महज रस्मी बन कर रह जाएंगी और राजद एक बार फिर अपने पुराने ढर्रें पर आगे चलता रहेगा ? यदि राजद  हार के कारणों की तलाश पूरी ईमानदारी से करता है तो निसंदेह वह आने वाले दिनों में इस महाशिकस्त से उबर कर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मजबूती के साथ खड़ा हो सकता है और अगर नहीं करता है तो प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश की जोड़ी के सामने उसकी स्थिति पुनर्मुशको भव वाली हो सकती है।  जिस तरह से राजद का नेतृत्व संभाल रहे लालू परिवार के अंदर घमासान मचा हुआ है उसे देखते हुये यह अनुमान  लगाया जा रहा है कि राजद की ये दो दिनी समीक्षा बैठकें रस्मी ही साबित होने वाली हैं। राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने बताया कि समीक्षा बैठक में 28 मई को तेजस्वी यादव राजद के सभी उम्मीदवारों के साथ बैठक करेंगे और 29 मई को विधानसभा और विधान परिषद के राजद सदस्यों के साथ बैठक करेंगे।

यदि आज लोकसभा चुनाव में बिहार में राजद जीरो पर आउट हो गया है तो उसका एक महत्वपूर्ण कारण लालू खानदान के अंदर नेतृत्व पर कब्जा को लेकर मचा घमासान है। जानकारों का कहना है कि तेजस्वी यादव भले ही औपचारिक रूप से पार्टी की कमान संभाल रहे हैं लेकिन बड़े भाई तेज प्रताप यादव और बहन मीसा भारती की तरफ से उन्हें लगातार चुनौती दी जाती रही है। तेजस्वी यादव पर तेज प्रताप यादव और मीसा भारती के दबाव का ही असर था कि राज्यसभा सांसद होने के बावजूद उन्हें पाटलिपुत्र लोकसभा से क्षेत्र से राजद का उम्मीदवार बनाया गया और वह भाजपा के उम्मीदवार रामकृपाल यादव से परास्त हो गयीं। राजद का एक धड़ा मानता है कि यदि इस सीट पर भाई वीरेंद्र को मौका दिया जाता तो सूरतहाल कुछ और होता। मीसा टक्कर देने में तो कामयाब रही लेकिन शिकस्त नहीं दे सकी। जिस तरह से भाई वीरेंद्र की अनदेखी करके मीसा भारती को पाटलिपुत्र से मैदान में उतारा गया उसे राजद के समर्थकों और कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी पैदा हुई, जिसका उन्होंने कभी खुलकर  इजहार नहीं किया। इनका मानना था कि लालू परिवार अपने आप को पार्टी पर थोप रहा है। मीसा भारती पहले से ही राज्यसभा की सदस्य थी। लोकसभा चुनाव लड़ने का उनका फैसला पूरी तरह से उनके व्यक्तिगत गुरूर को प्रदर्शित कर रहा था। अहम सवाल यह है कि क्या समीक्षा बैठक में पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से मीसा भारती की हर की वजह पूरी ईमानदारी से तलाश की जाएगी ?  इसकी उम्मीद बहुत ही कम है क्योंकि इन समीक्षा बैठकों की स्थिति कमोबेश बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे वाली होगी।

इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता है कि बिहार में राजद को डुबोने में लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने भी अहम किरदार अदा किया है। सारण लोकसभा क्षेत्र से अपने ससुर चंद्रिका राय को हराने की अपील तो बार-बार कर ही रहे थे, साथ ही शिवहर और जहानाबाद लोकसभा सीट पर राजद के उम्मीदवारों के खिलाफ भी वह खुलेआम मोर्चा खोले हुये थे और तेजस्वी यादव सहित पार्टी के शीर्ष नेताओं में इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करे। क्या समीक्षा बैठकों के दौरान बिहार में राजद की शिकस्त में तेजप्रताप यादव के किरदार को तौलने की कोशिश होगी या तेजस्वी सहित राजद के तमाम कद्दावर नेता एक बार फिर इस पर खामोश रहेंगे ?

राजद ने महागठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी को जिस तरह से तरजीह दी वह भी राजद के कद्दावर नेताओं को गले नहीं उतर रहा था। वे लोग दबी जुबान से इस बात को स्वीकार कर रहे थे कि तेजस्वी यादव मुकेश सहनी की पार्टी को लेकर जरुरत से ज्यादा ही उत्साहित हैं। तेजस्वी यादव को बार-बार यह समझाने की कोशिश की जा रही थी कि मुकेश सहनी, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को दिये गये सीटों में कटौती करके वामपंथी दलों को महागठबंधन में लाने के लिए कोई चुनावी फार्मूला बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। लेकिन तेजस्वी यादव ने इस तजवीज की हर स्तर पर अनदेखी की। आरा लोकसभा सीट पर सीपीआई (एमएल) के उम्मीदवार राजू यादव को इस शर्त पर समर्थन दिया कि पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर सीपीआई (एमएल) के लोग मीसा भारती को जीत दिलाने में सक्रिय होंगे। यह मौखिक तालमेल भी राजद के खिलाफ गया। बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से राजद ने तनवीर हसन को मैदान में उतार कर एक तरह से सीपीआई के उम्मीदवार कन्हैया को कमजोर करते हुये भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह के लिए फतह का दरवाजा पूरी तरह से खोल दिया। जानकारों का कहना है कि राजद ने वामपंथी खेमों को महागठबंधन से दूर रखकर और मुकेश सहनी व उपेंद्र कुशवाहा को तरजीह देकर रणनीतिक गलती की। अफवाह तो यहां तक उड़ रही थी कि वीआईपी के उम्मीदवार भी मोटी रकम लेकर तेजस्वी यादव ने ही तय किया था। राजद  के तमाम उम्मीदवारों की हार में इस अफवाह का थोड़ा बहुत असर निश्चित तौर पर था। क्या राजद अपनी समीक्षा बैठकों में इस मसले पर चर्चा करेगा।

यदि किसी जंग में जीत का श्रेय किसी सेना के सेनापति को जाता है तो हार की जिम्मेदारी भी उसी की होती है। राजद के मुखिया लालू यादव की गैर मौजूदगी में लोकसभा चुनाव में राजद की कमान तेजस्वी यादव के हाथ में थी। क्या राजद की समीक्षा बैठक में तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल उठेगा, क्या वह खुद इस्तीफा की पेशकश करेंगे या फिर शीर्ष नेतृत्व को आलोचना से पूरी तरह से दूर रखा जाएगा? इन सवालों  का जवाब देने से राजद के तमाम नेता कतरा रहे हैं.

बेशक राजद की ताकत माई (मुस्लिम और यादव) समीकरण में निहित रही है। इस बार मुसलमान और यादव भी राजद से दूर होते हुये दिखे हैं। क्या इन समीक्षा बैठकों माई समीकरण को  भी लालू यादव की  कसौटी पर कसा जाएगा, क्योंकि इसी समीकरण की वजह से लालू यादव और राबड़ी देवी बिहार की सत्ता में 15 सालों तक काबिज रहे।

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