वाराणसी : प्रधानमंत्री के जीत के अंतर पर सबकी निगाहें

लखनऊ । वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में इस बार लड़ाई जीत-हार की नहीं वोटों के अंतर की लड़ाई है। अब देखना यह होगा कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री सर्वाधिक मतों से विजय पाने वाले उम्मीदवार बन पाते हैं या नहीं। 

यहां अधिसूचना जारी होने के बाद से ही राजनीतिक हलचलें तेज हो गयी।बहुत दिनों तक प्रियंका वाड्रा की बनारस से चुनाव लड़ने की अटकलों और बाद में अजय राय को उम्मीदवार बनाने की घटना ने पहले ही कांग्रेस द्वारा अपनी पराजय को स्वीकार कर लिए जाने जैसा माना जा रहा है। वहीं सातवें चरण में पड़ने वाले मतदान के लिए सेना से बर्खास्त सिपाही का महागठबंधन का उम्मीदवार घोषित करना और उसके बाद पर्चा खारिज होना सपा के लिए झटका रहा। अब सपा पुन: शालिनी यादव को अपना उम्मीदवार बनाने को विवश हो गयी। 

वाराणसी प्रधानमंत्री का चुनाव क्षेत्र होने के कारण चर्चा में तो है ही। इसके चर्चा में रहने के कई अन्य कारणों में सेना के बर्खास्त सिपाही का पर्चा खारिज होना, 102 उम्मीदवारों में 71 लोगों का पर्चा खारिज होना, तेज बहादुर का सुर्पीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए भी चर्चा में रहा। अब यहां 26 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनके भाग्य का फैसला 28,29,204 मतदाता करेंगे। इनमें 23 उम्मीदवार तो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जुझते नजर आ रहे हैं। यदि कोई मैदान में टक्कर देतेे नजर आ रहा है तो वे कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय और महागठबंधन की शालिनी यादव हैं। 

 2014 में 371784 वोट से जीते थे पीएम मोदी 

पिछली बार लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को 5,81,022 वोट मिले थे, जबकि अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 मत मिले थे। नरेंद्र मोदी ने 3,71,784 मतों से अरविंद केजरीवाल को मात दी थी। कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय एक लाख वोट तक नहीं पहुंच पाए थे। 75,614 मत पाने के कारण उनकी जमानत भी जब्त हो गयी थी। चौथे स्थान पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार विजय प्रकाश जायसवाल थे, जिन्हें 60,579 मत मिले थे, जबकि सपा के उम्मीदवार कैलाश चौरसिया को 45,291 मत मिले थे। यदि सपा-बसपा के मत को मिला भी दिया जाय तो 1,05,870 मत ही होते हैं। यह स्थिति तब थी, जब नरेंद्र मोदी गुजरात से चलकर बनारस से चुनाव लड़ रहे थे। अब तो वे बनारस में ही रच-बस गये हैं। बनारस उनका और वे बनारस के हो गये हैं।

वाराणसी का जातीय समीकरण

वाराणसी लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण को देखें तो ब्राह्मण, वैश्य और कुर्मी मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं। यहां करीब तीन लाख वैश्य, 2.60 लाख कुर्मी, 2.45 लाख ब्राह्मण, तीन लाख मुस्लिम (६० प्रतिशत अंसारी ), 1 लाख 30 हजार भूमिहार, एक लाख राजपूत, 1.75 लाख यादव, 80 हजार चौरसिया, एक लाख दलित और एक लाख के करीब अन्य ओबीसी मतदाता हैं। नरेंद्र मोदी ने इस बार यादव और मुस्लिम मतदाताओं में भी जबरदस्त सेंधमारी की है।

अजय राय को राजनीतिक कैरियर

यदि कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय के राजनीतिक कैरियर पर ध्यान दें तो वे 1996 में बीजेपी के टिकट पर वाराणसी की कोइलसा विधासनभा सीट से चुनाव लड़े। उन्होंने 9 बार के सीपीआई विधायक उदल को 484 मतों के अंतर से हराया था। 2002 और 2007 का भी चुनाव अजय राय बीजेपी के टिकट पर इसी विधानसभा क्षेत्र से लड़े और जीते। 2009 में अजय राय वाराणसी लोकसभा सीट से बीजेपी का टिकट चाहते थे। पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना किया तो वह बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। 2009 का चुनाव अजय राय सपा के टिकट पर वाराणसी से लड़े और तीसरे नंबर पर रहे। अजय राय को इस चुनाव में 1.23 लाख वोट मिले थे। इस चुनाव में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी जीते थे।

अजय राय के भाषा में आया बदलाव

यदि अजय राय के इस चुनाव पर गौर करें तो पिछले पांच साल तक सक्रिय रहने वाले अधिसूचना जारी होने के बाद कांग्रेस उम्मीदवार के बोल में बदलाव आ गया है। कारण चाहे जो हों लेकिन अब आक्रामकता नहीं दिख रही है। वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह का कहना है कि काफी देर बाद टिकट मिलने के कारण अजय राय और उनके समर्थकों में निराशा है। वे इस चुनाव का परिणाम जान चुके हैं। इस कारण अपनी ऊर्जा को बचाये रखना चाहते हैं। यह बता दें कि पहले प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अजय राय के काफी आक्रामक रूख रहते थे लेकिन अब उसमें बदलाव आया है और व्यक्तिगत आक्षेपों से बचते नजर आ रहे हैं। 

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