विधानसभा सीट पलवल: टिकट के लिए घमासान

पलवल । हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा होने के साथ ही कुछ सीटों पर राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा भी कर दी है। ऐसे प्रत्याशी चुनाव क्षेत्रों में जोर-शोर से प्रचार कार्य कर रहे हैं, लेकिन अभी अधिकतर पार्टियों के प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होनी बाकी है। इनमें भारतीय जनता पार्टी, इंडियन नेशनल कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी, इनेलो, बसपा आदि शामिल हैं। इन पार्टियों में टिकट को लेकर घमासान मचा हुआ है।
आम आदमी पार्टी ने पलवल विधानसभा सीट के लिए सबसे पहले प्रत्याशी घोषित किया है। आप ने यहां से पार्टी के जिला संयोजक कुलदीप कौशिक को उम्मीदवार घोषित किया है। उन्होंने क्षेत्र में जोर-शोर से चुनाव प्रचार का काम शुरू कर दिया है। दूसरी पार्टियों में कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार एवं पलवल विधानसभा क्षेत्र से वर्तमान विधायक  करण सिंह दलाल और भारतीय जनता पार्टी के संभावित उम्मीदवार दीपक मंगला ने भी अपने-अपने चुनाव क्षेत्र में जोर-शोर से प्रचार करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा अन्य पार्टी के लोग अपना टिकट लेने के लिए कम, प्रतिद्वंदी का टिकट कटवाने के लिए हाई कमान पर दबाव बनाने में जुटे हुए हैं। सबसे ज्यादा विरोध भारतीय जनता पार्टी के संभावित एवंं पिछले चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके दीपक मंगला का किया जा रहा है।

विरोधियों का अपना-अपना तरीका है। कोई जातीय समीकरण को सामने रख रहा है तो कोई क्षेत्र में अपने प्रभाव और योग्यता को मुद्दा बनाकर टिकट मांग रहा है। भाजपा की टिकट पाने वाले पिछले 5 वर्षों में भ्रष्टाचार से संबंधित मुद्दों की लिस्ट लेकर हाई कमान को दिखा रहे हैं। पलवल की सीट के लिए कम से कम सात लोग टिकट की लाइन में हैं। ये सभी अपने-अपने समीकरण दिखाते हुए दीपक मंगला की कमियों और बुराइयों को गिनाने का का काम कर रहे हैं। मंगला का सबसे ज्यादा जो विरोध कर रहे हैं, उनमें गौरव गौतम का नाम भी शामिल है।

गौतम को भारतीय जनता पार्टी के तेज-तर्रार राष्ट्रीय महामंत्री अनिल जैन का निकट सहयोगी माना जाता हैै। दूसरे विरोधी के रूप में यहां पर वीरपाल दीक्षित का नाम सामने आ रहा है। दीक्षित जातीय समीकरण को आगे रखकर अपनी जीत का दावा करते हुए टिकट मांग रहे हैं। इनके अलावा पार्टी के गुर्जर जाति से सतवीर सिंह पटेल,  पंजाबी बिरादरी से पूर्व मंत्री सुभाष कत्याल जो हैफेड के चेयरमैन भी हैं, वे भी टिकट पाने की उम्मीद में दिन-रात एक किए हुए हैं।

प्रदेश सरकार में अच्छा रसूख रखने वाले केबिनेट मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ के खाश मेहरचंद गहलोत भी टिकट की दौड़ में दीपक मंगला की राह के कांटे हैं। पंजाबी बिरादरी के अशोक चुघ और प्रवीण ग्रोवर अपने-अपने तरीके से हाई कमान पर दबाव बना रहे हैं। इन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रदेश कार्यवाह सुभाष आहूजा और प्रदेश प्रचारक विजय कुमार से मदद मिलने की उम्मीद है।
पूर्व विधायक सुभाष चौधरी अभी तक भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन वे भी टिकट पाने की उम्मीद पाले हुए हैं। चौधरी ने 19  सितम्बर को पलवल में एक महापंचायत कर ऐलान किया था  कि वह पलवल सीट से भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ेंगे। हालांकि बाद में उन्होंने 21 और फिर 51 सदस्यीय कमेटी का गठन कर भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर आजाद  अथवा अन्य किसी पार्टी से चुनाव लड़ने की भी घोषणा की है।

फिलहाल, सुभाष चौधरी भारतीय जनता पार्टी के किसी भी प्रत्याशी के लिए सबसे अधिक नुकसानदायक उम्मीदवार  साबित हो सकते हैं। उन्हें पलवल में सबसे दबंग, पंचायती और गरीबों का हितेषी नेता माना जाता है। वर्ष 2009 में इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी से विधायक बनने के बाद से अभी तक वह इनैलो जुड़े हुए थे और करीब 2 महीने पहले ही उन्होंने  इनैलो को अलविदा कह दिया था। अब भाजपा से टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

यदि सुभाष चौधरी को भाजपा से टिकट नहीं मिलता है तो सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा के उम्मीदवार का ही होगा। आम चर्चा है कि पलवल सेे कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिन्ह पर वर्तमान विधायक करण सिंह दलाल चुनाव लड़ेंगे और भाजपा केेे चुनाव चिन्ह पर दीपक मंगला चुनाव लड़ेंगे। इन दोनों केेे बीच यदि सुभााष चौधरी किसी भी तरह से चुनावी मैदान में उतरते हैं तो मुकाबला तिकोना होगा। जो लोग सत्ता के विरुद्ध वोट करना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व में मंत्री भी रहे करण सिंह दलाल को वोट नहीं देना चाहते, उनके पास विकल्प के रूप में सुभाष चौधरी सबसे सशक्त उम्मीदवार होंगे।

फिलहाल, पलवल विधानसभा सीट से अभी तक आम आदमी पार्टी ने अपना प्रत्याशी कुलदीप कौशिक को चुनाव मैदान में उतारा है। इसके अलावा इंडियन नेशनल लोकदल से महेंद्र सिंह चौहान का नाम प्रत्याशी के रूप में माना जा रहा है। जेजेपी से यहां विजेंद्र सिंह चांदहट और गयालाल चांदहट का नाम प्रमुख रूप से लिया जा रहा है।

28 सितम्बर तक श्राद्ध पक्ष के चलते किसी अन्य पार्टी के द्वारा अपना उम्मीदवार घोषित करने की उम्मीद नहीं है। चार-पांच  दिन बाद स्थिति स्पष्ट होगी कि टिकट किन-किन उम्मीदवारों को मिलेगा। उसके बाद अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक जाकर मुकाबले की तस्वीर साफ होगी। अभी तो महज नेताओं के बीच ही टिकट पाने को लेकर घमासान मचा हुआ है।

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