हरियाणा ने अब पंजाब विश्वविद्यालय में मांगा हिस्सा

चंडीगढ़ । राजधानी चंडीगढ़ और अलग हाईकोर्ट के मुद्दे पर पंजाब के साथ उलझे हरियाणा ने अब चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में भी अपना हिस्सा मांगा है। एक साल से इस कवायद में जुटी हरियाणा सरकार ने एक बार फिर नए सिरे से केंद्रीय गृहमंत्री को इस बारे में पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की मांग की है। हरियाणा ने कहा है कि वह पंजाब विश्वविद्यालय में पंजाब के समान अनुदान देने को राजी है।
पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव 1867 में आया था। 1882 में चंडीगढ़ में इसकी स्थापना की गई थी।  संयुक्त पंजाब के समय अस्तित्व में आए पंजाब विश्वविद्यालय में 92 प्रतिशत योगदान केंद्र और आठ प्रतिशत योगदान पंजाब का था। वर्ष 1966 में पंजाब से हरियाणा अलग हो गया। इसके बाद पंजाब विश्वविद्यालय में 92 प्रतिशत केंद्र और चार-चार प्रतिशत पंजाब और हरियाणा का योगदान रहा।
वर्ष 1996 में हरियाणा की तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने एक विवााद की वजह से पंजाब विश्वविद्यालय से हरियाणा का हिस्सा हटा लिया। बंसीलाल के बाद हरियाणा में कई सरकारें आईं लेकिन किसी ने भी पंजाब विश्वविद्यालय में हिस्सा नहीं मांगा। हिस्सेदारी न होने से महत्वपूर्ण फैसले लेने वाली सीनेट की सदस्यता भी हरियाणा के पास नहीं है। हरियाणा को अगर हिस्सेदारी मिलती है तो मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री के अलावा एक या दो विधायक को भी सीनेट की सदस्यता मिल सकती है।

हरियाणा सरकार की रणनीतिः

 पंजाब विश्वविद्यालय में 85 फीसदी सीटें चंडीगढ़ में पढ़े रहे विद्यार्थियों के लिए आरक्षित हैं। 15 फीसदी सीटें दूसरे प्रदेशों के लिए हैं। ऐसे में चंडीगढ़ के नजदीक लगते पंचकूला, अंबाला और यमुनानगर जिलों के युवाओं को यहां एडमिशन मिलने में परेशानी आती है। पंजाब विश्वविद्यालय में हिस्सेदारी होने पर संबंधित राज्य को फंड देना होता है। अगर हरियाणा को हिस्सा मिलता है तो उसे आठ करोड़ रुपये सालाना देने होंगे। हरियाणा सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में हलफनामा दायर किया है। इसमें कहा गया है कि वह 20 करोड़ रुपये देने को तैयार है। पंजाब विश्वविद्यालय से पहले पूर्व में पंचकूला, अंबाला, यमुनानगर आदि जिलों के कॉलेज संबद्ध थे। दोबारा हिस्सेदारी मिलने पर इन जिलों के कॉलेजों को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से हटाकर पंजाब विश्वविद्यालय से जोड़ा जा सकता है।इस पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना है कि पंजाब विश्वविद्यालय में हरियाणा की हिस्सेदारी लंबे समय तक रही है। एक सरकार ने सत्ता में रहते हुए हजारों विद्यार्थियों के भविष्य की अनदेखी की। उसका खामियाजा आज तक भुगतना पड़ रहा है। उनकी कोशिश है कि पंजाब विश्वविद्यालय में हरियाणा का हिस्सा बहाल हो। इसके लिए हाईकोर्ट में हलफनामा दायर किया गया है। केंद्र सरकार को लिखे पत्र में हस्तक्षेप की मांग की गई है।
इस पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि इसका कोई औचित्य नहीं है। वर्तमान परिवेश में हरियाणा की मांग आधारहीन है।

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