जैविक खेती के लिए छोड़ी नौकरी, महिलाएं बनी उद्यमी

लोगों के साथ-साथ परिवार की सेहत का भी रख रही ख्याल

नई दिल्ली । जैविक खेती के तमाम फायदों के मद्देनजर अब महिलाएं भी इस क्षेत्र में हाथ आजमा रही हैं। उनका जैविक खेती के प्रति रुझान इस कदर है कि वे इसके लिए अपनी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ चुकी है। नई दिल्ली में चल रहे ऑरगेनिक फूड फेस्ट में देश के कोने-कोने से भाग लेने आई महिला उद्यमियों ने बताया कि जैविक खेती ने उनकी न केवल जिंदगी बदल दी बल्कि जीवन जीने का नजरिया भी बदल दिया है। राजस्थान के कोटा से आई शुभ्रा गुप्ता ने बताया कि वे पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं, लेकिन अब वे जैविक आंवले से च्यवनप्राश और कैंडी बनाती हैं। कृषि विज्ञान के एक सेमिनार ने उन्हें एक नई राह दिखा दी है। वहां से फूड प्रोसेसिंग में ट्रेनिंग लेने के बाद जैविक खेती के बारे में भी जानकारी हासिल की और घर के लिए च्यवनप्राश बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। वे बताती हैं कि घर के साथ पड़ोसियों को भी च्यवनप्राश पसंद आने लगा। उनकी जिंदगी में फर्क दिखाई देने लगा। धीरे-धीरे इस काम में मजा आने लगा औऱ इसे ऑनलाइन भी बेचना शुरू कर दिया। अब लोग इसके लिए ऑर्डर देने लगे हैं। महाराष्ट्र से आई नंदा पांडुरंग भुजबल बताती हैं कि उनके लिए खेती और खासकर जैविक खेती कोई नई बात नहीं थी, लेकिन इससे जितने पैसे मिलने चाहिए थे उतने नहीं मिला करते थे। इसलिए बालवाड़ी में नौकरी करने लगी। वहां जैविक खेती औऱ उत्पाद के बारे में पता चला। वे बताती हैं कि उन्हें हैरानी हुई कि उनके घर में तो जौविक खेती ही होती है फिर भी उन्हें उतनी कमाई नहीं हो पाती। वहीं एक सरकारी संस्थान में फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग ली और नौकरी छोड़ दाल बनाने की मशीन लगा ली। दाल तैयार करने से लेकर उसकी पैकिंग का काम भी वे खुद करती हैं। नंदा बताती हैं कि इससे अब नौकरी से कई गुना कमाई होने लगी है। अब एक स्वंय सेवी समूह के माध्यम से दालें, चना, बाजरा, ज्वार बेचे जा रहे हैं। असम की रहने वाली नीना साइका बताती हैं कि वे दिल्ली में पढ़ाई करती थीं और यही पर एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी। नौकरी के दौरान यही शादी की। शुरू से ही कुछ अपना बिजनेस शुरू करने का मन था। सो जैविक उत्पादों के बारे में जानना शुरू किया। कई बार असम गए, वहां के चाय बागानों के बारे में जाना। उन्हें प्रमोट कर अपना एक ब्रांड तैयार करना शुरू किया। चाय बागानों के अलावा सुदूर क्षेत्रों की पारंपरिक चाय भी प्रमोट कर रही हैं।

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