राजनीतिक उपेक्षा से खंडहर में तब्दील हुआ गुरुग्राम का बस अड्डा

गुरुग्राम । शहर का नाम मिलेनियम सिटी गुरुग्राम। देसी-विदेशी लोगों और कंपनियों का हब। तीन रेल नेटवर्क भारतीय रेल, दिल्ली मेट्रो और रैपिड मेट्रो। देश की सबसे बड़ी चार पहिया वाहन निर्माता यानी मारुति के दो-दो प्लांट। बेशक इन सब खूबियों के साथ हम इतरा रहे हों, लेकिन इन सब खूबियों वाले शहर गुरुग्राम के माथे पर धब्बा है यहां का बस अड्डा। जो कि राजनीतिक उपेक्षा के चलते खंडहर में तब्दील हो गया है। 
60 साल का हो चुका है गुरुग्राम का बस अड्डासरकारें आई और गई, लेकिन किसी ने इस 60 साल पुराने बस अड्डे का उद्धार करने की जहमत नहीं उठाई। वर्ष 2015 से कंडम घोषित कर दिये गये गुरुग्राम के बस अड्डे की छतों के नीचे बैठने से भी डर लगता है पर मजबूरी है। बेशक बॉलीवुड की नजर में यह शहर बैंकॉक से कम न हो, लेकिन यहां के बस अड्डे को देखकर लगता है कि किसी सुदूर इलाके की कोई खंडहर इमारत हो। खास बात यह है कि बस अड्डे की कुछ दूरी पर हाइवे पर तो विकास के लिए नेताओं की नजर रही, लेकिन बस अड्डे के उद्धार की नहीं सोची। लगातार तीन योजनाओं से सांसद बनते आ रहे राव इंद्रजीत सिंह अब चौथी योजना में भी यहां से सांसद चुने गये हैं, वे भी बाकी विकास परियोजनाओं में श्रेय लेने में आगे रहते हैं, लेकिन बस अड्डे की हालत पर कभी नहीं बोले। 
सेफ्टी असेसमेंट सर्वे में किया था कंडम घोषित वर्ष 1959 में बनाये गये गुरुग्राम के बस अड्डा को वर्ष 2015 में पीडब्ल्यूडी विभाग की ओर से कंडम घोषित करके इसे खतरनाक बताया जा चुका है। इसके लिए इसका सेफ्टी असेसमेंट सर्वे किया गया था। बस अड्डे की इमारत पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है। यहां की छतों से लेंटर और पपड़ी गिरना आम बात पिछले कई वर्षों से है। रिपोर्ट में कहा गया था कि बेहतर होगा कि इसका उपयोग बंद कर दिया जाये। इसके बाद भी इसकी पूरी इमारत को छोडऩे की बजाय कुछ हिस्सों को जाली लगाकर बंद कर दिया गया, ताकि लोग उस क्षेत्र में न जायें। बस अड्डा के बाकी के हिस्से का उपयोग अब तक जारी है। 
सपोर्ट देकर थामे गये हैं पिलर्सराउंड शेप में बने बस अड्डे के पीलर्स भी खंडहर हो चुके हैं। इन्हें अलग से सपोर्ट देकर सिर्फ रोका गया है। हालांकि ये कभी भी गिर सकते हैं। दुनिया में जिस शहर का नाम है, उस शहर का बस अड्डा आलीशान होने की बजाय सिर्फ और सिर्फ जुगाड़ पर चल रहा है। देश की राजधानी दिल्ली के साथ सटे शहर गुरुग्राम के बस अड्डे का ही यह हाल है। यहां पर यात्रियों के लिए गर्मी में पंखे नहीं है। पीने के पानी का टोटा है। शौचालय व अन्य चीजों भी बेमानी ही हैं। 
बाकी जिलों में बन चुके हैं आलीशान बस अड्डेगुरुग्राम को छोड़ दें तो हरियाणा के बाकी लगभग सभी जिलों में नये बस अड्डों का निर्माण हो चुका है। वो भी आलीशन। लेकिन सरकार को सबसे अधिक राजस्व देने वाले शहर गुरुग्राम के नसीब में शायद ही नया और सभी सुविधाओं से सुसज्जित बस अड्डा हो। क्योंकि राजनीतिक रूप से भी इस ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया। गुरुग्राम से दिल्ली, चंडीगढ़, बैजनाथ, आगरा, जयपुर समेत यूपी के कई शहरों के लिए बसें संचालित होती हैं। एक तरह से यह इंटर स्टेट बस अड्डा है। यहां से रोजाना 50 हजार से अधिक लोग यात्रा करते हैं। दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की सेंकड़ों बसें यहां से चलती हैं। क्योंकि दिल्ली में जाने वाले यात्रियों के लिए डीटीसी ही एक बड़ा माध्यम है। 
नये बस अड्डे के नाम पर हुई सिर्फ चाहरदीवारीवल्र्ड क्लास सिटी में बस अड्डा की हालत से प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल अनजान नहीं हैं। उनके समक्ष बस अड्डा का पूरा ब्यौरा है कि यहां की जनता किस तरह से खतरे को झेल रही है। हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड में बस अड्डा बनाने के लिए साइट देखने की बात कही थी। इसके बाद यहां लघु सचिवालय के सामने राजीव चौक पर पांच एकड़ जमीन का चयन करके चाहर दीवारी भी कर दी गयी। लेकिन चाहर दीवारी के अलावा यहां पर और कुछ काम नहीं हो पाया है। अब जनता भी सांसद राव इंद्रजीत से यह जवाब चाहती है कि आखिर क्यों नहीं बस अड्डे का काम हुआ। वैसे तो वे हर काम के लिए आवाज उठाने की बात कहते हैं, लेकिन बस अड्डे के लिए उन्होंने शायद ही कभी आवाज उठायी हो। अब चुनाव में उनको यह भी जवाब देना चाहिए कि आखिर वे बस अड्डे को लेकर कभी गंभीर क्यों नहीं हुये।  

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